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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२९५)*
*राग नट नारायण १८*
*(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
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*२९५. परमेश्वर महिमा ।*
*राज विद्याधर ताल*
*तुम बिन ऐसैं कौन करै !*
*गरीब निवाज गुसांई मेरो,माथै मुकुट धरै ॥टेक॥*
*नीच ऊँच ले करै गुसांई, टार्यो हूँ न टरै ।*
*हस्त कमल की छाया राखै, काहू तैं न डरै ॥१॥*
*जाकी छोत जगत को लागै, तापर तूँ हीं ढ़रै ।*
*अमर आप ले करे गुसांई, मार्यो हूँ न मरै ॥२॥*
*नामदेव कबीर जुलाहो, जन रैदास तिरै ।*
*दादू बेगि बार नहीं लागै, हरि सौं सबै सरै ॥३॥*
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भादी०-हे दीनदयालो ! पतितपावन परमेश्वर ! त्वां विना कोऽन्योऽस्ति यो दीनोद्धारको भवेत् । भवतां बिनाऽधमेषु जीवेषु कोऽन्यो द्रवेत अहं स्त्रीजातिर्वेश्या च पापपरायणा ब्राह्मणैरस्पृश्या निद्या चास्मि तथापि मम हस्ताभ्यां स्वशिरसि मुकुटं धारितं न च गृहानिर्जाता अहो स्वामिन् मादृशी सु अधमासु दयां विधाय भक्तानां मध्ये सर्वमान्या पूज्या कृता । किं वच्मि तव दयालुताया विषये यतो हि दयाकालेन जात्यादिकमपेक्षते । त्वत्कृपापात्रं भक्तो न यमादिभ्योऽपि विभेति । स च त्वत्कृपयाऽमरो (जीवन्मुक्तो) भवति । स चान्यैर्ध्नतोऽपि न हतो भवति । न च तव भक्ति जन्मजन्मान्तरे हातुं शक्नोति किन्तु सदा तव दासो भवति । यथा नामदेवकबीरेरैदासादयो भक्ताः शीघ्रं संसार-सागरं तीर्वा मुक्ता जाताः । यतो हरेः किं दुष्करं, पापिनोऽपि स तारयति । ये तव शरणागतास्तेषां सर्वाणि कार्याणि भगवत्कृपया स्वयमेव सेत्स्यन्ति ।
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वैष्णवमताब्जभास्करे-
सर्वे प्रपत्तेराधिकारिणः सदा शक्ता अशक्ता अपि नित्यरंगिणः ।
अपेक्ष्यते नात्र कुलं वलं च नो तत्राऽपि कालो नहि शुद्धता च ॥
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आलविन्दारस्तोत्रे-
दुरन्तस्थानादेरपरिहरणीयस्य महतो
निहीनाचारोऽयं नृपशुरशुभस्थ्यास्यपदमपि
दयासिन्धो बन्यो निरवधिक-वात्सल्य - जलधे
तव स्मारं स्मारं स्मारं गुणगणमितीच्छामि गतभीः॥
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मेरे स्वामी भगवान् दयालु ! दीनों के उद्धार करने वाले पतितपावन हैं और मेरे निःसीम प्रेम के पात्र हैं, मैं उनको नहीं छोड़ सकती हूँ । मैं जाति से स्त्री वेश्या पापपरायणा तथा ब्राह्मणों से अस्पृश्य निन्दनीय हूँ फिर भी आपने दया करके मेरे हाथों से अपने शिर पर मुकुट पहना और जरा सी भी ग्लानि नहीं की, किन्तु मुझे भक्तों के मध्य में सर्वमान्य पूजनीय बना दिया ।
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आपकी दयालुता के विषय में और क्या कहूं ? आपका कृपा-पात्र भक्त यम आदि से भी नहीं डरता । आपकी कृपा से वह अजर अमर(जीवन्मुक्त) हो जाता है । दूसरों के मारे जाने पर भी वह नहीं मरता । क्योंकि आप उसके सदा रक्षक रहते हैं । आपका भक्त आपकी भक्ति को जन्मातरों में भी नहीं त्यागता । किन्तु सदा के लिये आपका दास बन जाता है ।
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जैसे नामदेव, कबीर, रैदास आदि भक्त शीघ्र ही संसार सागर को पार करके मुक्त हो गये । हे हरे ! आपके लिये क्या दुष्कर है, आप तो पापियों को भी तार देते हैं । जो आपकी शरण में आ जाते हैं उनके सारे कार्य आपकी दया से स्वयं ही सिद्ध हो जाते हैं ।
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वैष्णवमताब्जभाष्कर –
आपकी शरण में आने का सभी को अधिकार है, चाहे वह शक्त हो या अशक्त, किन्तु आपके प्रेम में रंगा हुआ होना चाहिये । कृपा करते समय भगवान् यह नहीं देखते कि इसका कुल कैसा है, इसमें क्या बल है, शुद्ध है या नहीं, कृपा का भी समय है या नहीं ?
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आलविन्दारस्तोत्र में –
हे दयासिन्धो, दीन-बन्धो ! मैं दुराचारी, नरपशु आदि अन्त रहित, अपरिहार्य महान् अशुभों का भंडार हूँ, तो भी हे अपार-वात्सल्य-सागर ! आपके गुण-गणों का स्मरण करके निर्भय हो जाऊं, ऐसी इच्छा करता हूँ ।
(क्रमशः)
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