रविवार, 12 फ़रवरी 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ११३*

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*चोर न भावै चांदणां, जनि उजियारा होइ ।*
*सूते का सब धन हरूँ, मुझे न देखै कोइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग गुंड(गौंड) ६ (गायन समय - वर्षा ॠतु सब समय)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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११३ ज्ञान जागरण । त्रिताल
चेतन१ चित्त चोर कहां जाय, 
निद्रा नेह मुसे२ घर आय ॥टेक॥
ज्यों रजनी गत रवि प्रकाश, 
तारे सकल भये बल नाश ॥१॥
जब मंदिर मांही मंजार, 
तब चूहे त्यागैं घर बार ॥२॥
तिमिर कहां जब दीपक जोय, 
जन रज्जब जागे यूं होय ॥३॥७॥
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ज्ञान जागरण की विशेषता बता रहे हैं -
✦ सावधान१ चित्त वाले के पास चोर कहां जाता है ? जिसका निन्द्रा से प्रेम है अर्थात जो सोता रहता है उसके घर आकर चोर चुराता२ है ।
✦ जैसे रात्रि के चले जाने पर सूर्य का प्रकाश हो जाता है, तब सब तारों का प्रकाश रूप बल नष्ट हो जाता है अर्थात तारे तेज हीन हो जाते हैं ।
✦ जब घर में बिलाव३ आ जाता है तब चूहे घर बार को त्याग देते हैं ।
✦ जब घर में दीपक जला दिया जाता है तब अंधेरा कहां रहता है ? वैसे ही जब ज्ञान रूप जाग्रत अवस्था आती है तब अज्ञान अपने आप ही हृदय से हट जाता है ।
(क्रमशः)

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