🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू पड़दा भ्रम का, रह्या सकल घट छाइ ।*
*गुरु गोविन्द कृपा करैं, तो सहजैं ही मिट जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
श्रीरामकृष्ण - कप्तान में बहुत से गुण हैं । रोज नित्य-कर्म करता है, स्वयं देवता की पूजा करता है । नहाते समय कितने ही मन्त्र जपा करता है । कप्तान एक बहुत बड़ा कर्मी है । पूजा, जप, आरती, पाठ, ये सब नित्यकर्म हमेशा किया करता है ।
“फिर मैं कप्तान को सुनाने लगा । मैंने कहा, ‘पढ़कर ही तुमने सब मिट्टी में मिलाया, अब हरगिज न पढ़ना ।’
.
"मेरी अवस्था के सम्बन्ध में कप्तान ने कहा, 'यह आसमान में चक्कर मारनेवाला भाव है ।' जीवात्मा और परमात्मा, जीवात्मा एक पक्षी है और परमात्मा आकाश – चिदाकाश । कप्तान कहता है, 'तुम्हारा जीवात्मा चिदाकाश में उड़ जाता है, इसीलिए समाधि होती है । (हँसकर) कप्तान ने बंगालियों की निन्दा की । कहा, 'बंगाली बेवकूफ हैं । पास ही मणि है और उन लोगों ने न पहचाना !’
.
“कप्तान का बाप बड़ा भक्त था । अंग्रेजों की फौज में सूबेदार था, एक हाथ से शिव की पूजा करता था और दूसरे से बन्दूक चलाता था ।
(मास्टर से) "परन्तु बात यह है कि विषय के कामों में दिन-रात फँसा रहता है । जब जाता हूँ, देखता हूँ, बीबी और बच्चे घेरे रहते हैं । और कभी कभी हिसाब की बही भी लोग ले आते हैं । परन्तु कभी कभी ईश्वर की ओर भी मन जाता है ।
.
जैसे सन्निपात का रोगी, विकार-ग्रस्त बना ही रहता है परन्तु कभी जब होश में आता है, तब ‘पानी पिऊँगा, पानी पिऊँगा' कहकर चिल्ला उठता है । पर उसे जब तक पानी दो तब तक वह फिर बेहोश हो जाता है । इसीलिए मैंने उससे कहा, तुम कर्मी हो । कप्तान ने कहा, 'जी, मुझे तो पूजा आदि के करने में ही आनन्द आता है । जीवों के लिए कर्म के सिवा और उपाय भी नहीं है ।'
.
"मैंने कहा, 'तो क्या सदा ही कर्म करते रहना होगा ? मधुमक्खी तभी तक भन्भन् करती है जब तक वह फूल पर नहीं बैठ जाती । मधु पीते समय भन्भन् करना छूट जाता है ।' कप्तान ने कहा, 'आपकी तरह हम लोग पूजा और कर्म छोड़ थोड़े ही सकते हैं ?' परन्तु उसकी बात कुछ ठीक नहीं रहती । कभी तो कहता है, 'यह सब जड़ है' और कभी कहता है, 'सब चैतन्य है ।' पर मैं कहता हूँ, 'जड़ कहाँ हैं ? सभी कुछ तो चैतन्य है ।’ ”
.
श्रीरामकृष्ण मास्टर से पूर्ण की बात पूछने लगे ।
श्रीरामकृष्ण - पूर्ण को एक बार और देख लूँ तो मेरी व्याकुलता कम हो जाय । कितना चतुर है ! - मेरी ओर आकर्षण भी खूब है ।
"वह कहता है, 'आपको देखने के लिए मेरे हृदय में भी न जाने कैसा हुआ करता है ।'
.
(मास्टर से) "तुम्हारे स्कूल से उसके घरवालों ने उसे निकाल लिया, इससे तुम्हारे ऊपर कुछ बात तो न आयेगी ?"
मास्टर - अगर वे (विद्यासागर) कहें – ‘तुम्हारे लिए उसको स्कूल से निकाल लेना पड़ा’ - तो मेरे पास भी कुछ जवाब है ।
श्रीरामकृष्ण - क्या कहोगे ?
.
मास्टर - यही कहूँगा कि साधुओं के साथ ईश्वर-चिन्ता होती है, यह कोई बुरा कर्म नहीं, और आप लोगों ने जो पुस्तक पढ़ाने के लिए दी है, उसी में है - ईश्वर को हृदय खोलकर प्यार करना चाहिए । (श्रीरामकृष्ण हँसने लगे)
.
श्रीरामकृष्ण - कप्तान के यहाँ छोटे नरेन्द्र को मैंने बुलाया । पूछा, 'तेरा घर कहाँ है ? चल चलें ।' उसने कहा, 'चलिये ।' परन्तु डरता हुआ साथ जा रहा था कि कहीं बाप को खबर न लग जाय । (सब हँसते हैं)
(अखिलबाबू के पड़ोसी से) "क्यों जी, तुम बहुत दिनों से नहीं आये, सात-आठ महीने तो हुए होंगे ?"
.
पड़ोसी - जी, एक साल हुआ होगा ।
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारे साथ एक और आते थे ।
पड़ोसी - जी हाँ, नीलमणिबाबू ।
श्रीरामकृष्ण - वे सब क्यों नहीं आते ? - एक बार उनसे आने के लिए कहना - उनसे मुलाकात करा देना । (पड़ोसी के साथ के बच्चे को देखकर) यह बच्चा कौन है ?
.
पड़ोसी - यह आसाम का है ।
श्रीरामकृष्ण - आसाम कहाँ है ? किस ओर है ?
द्विज आशुतोष की बात करने लगे । कहा, 'आशुतोष के पिता उसका विवाह करनेवाले हैं, परन्तु उसकी इच्छा नहीं है ।'
श्रीरामकृष्ण - देखो तो, उसकी इच्छा नहीं है और बलपूर्वक उसका विवाह किया जाता है ।
श्रीरामकृष्ण एक भक्त से बड़े भाई पर भक्ति करने के लिए कह रहे हैं । कहा - बड़ा भाई पिता से समान होता है, उसका बड़ा सम्मान करना चाहिए ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें