रविवार, 12 फ़रवरी 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #२९४

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२९४)*
*राग नट नारायण १८*
*(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
.
*२९४. राजमृगांक ताल(बसंत में) *
*नीके मोहन सौं प्रीति लाई ।*
*तन मन प्राण देत बजाई, रंग रस के बनाई ॥टेक॥*
*ये ही जीयरे वे ही पीवरे, छोड्यो न जाई, माई ।*
*बाण भेद के देत लगाई, देखत ही मुरझाई ॥१॥*
*निर्मल नेह पिया सौं लागो, रती न राखी काई ।*
*दादू रे तिल में तन जावे, संग न छाडूं, माई ॥२॥*
.
भादी०-नि:सीम प्रेमपात्रं मे भगवानेवास्ति । अतो हृदयं मे प्रेमरसेन प्लावितम् । मे शरीरं मनः प्राणाश्च भगवति प्रतिष्ठिताः सन्ति । भगवानेव मे प्रियतमः । अयं जीवात्माऽपि तस्मै वाऽस्ति अतस्तं त्यक्तुं नेच्छामि । यदा कदाचिदपि तस्य वियोगो भवति तदा मदीयं हृदय-कमलं मूर्छितं भवति । अधुना प्रियतमेन सह मम निर्मलं प्रेमजातम् । नहि मे मनसि तं प्रति कापट्यं फलाभिलाषोवाऽस्ति । निष्कामप्रेग्णैव भगवान् तुष्यति । अतो न कथमपि तं प्रभुं हातुं समर्थो भवामि । यतो हि शरीरमिदं तु क्षणभङ्गुरम् । कदापि मां परित्यज्य यास्यति ।
.
उक्तं हि भक्तिस्सायने-
मनःस्पृष्टं वस्तु प्रियमखिलसाधारणमपि
क्वचिच्चक्षुदृष्टं यदि तदस्ति सौख्याय भवति ।
प्रियेभ्योऽपि प्रेयानतुलपरमानन्दजनको
ध्रुवं दृष्टो याभिस्तदुचितमतापां यदभवन्॥
.
भगवान् के साथ मेरा निःसीम प्रेम हो गया है । अब तो मैं मेरे हृदय को प्रेम रस से रंजित करके घण्टाघोष के द्वारा तन, मन प्राण सभी प्रियवस्तु भगवान् को अर्पण कर दी है । क्योंकि भगवान् मुझे बहुत ही प्रिय लगते हैं । मैं उनको छोड नहीं सकती, जब कभी उनसे मेरा थोडा सा भी वियोग हो जाता है तो मेरा मन मुरझा सा जाता है ।
.
मेरा प्रभु प्रेम के साथ निष्कपट फलेच्छ रहित है । क्योंकि भगवान् निष्कपट निष्काम भाव से प्रेम करने पर ही प्रसन्न होते हैं । अतः ऐसे प्रेमी भगवान् को मैं नहीं छोडूंगी क्योंकि शरीर क्षणभंगुर है, कभी भी मुझे छोड़कर जा सकता है ।
.
भक्तिरसायन में लिखा है कि –
मन को प्रिय लगने वाली वस्तु साधारण ही क्यों न हो वह एक बार आखों से देख ले तो वह अत्यन्त सुख को देने वाली होती है । भगवान् तो फिर प्रिय से भी अतिप्रिय हैं और परमानन्द को देने वाले हैं, अतः उनको कैसे त्याग सकता है ? जैसे गोपियों ने जैसे ही भगवान् को देखा वैसे ही वे सब निस्ताप हो गई ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें