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*अम्ह घर पाहुणां ये, आव्या आतम राम ॥*
*चहुँ दिशि मंगलाचार, आनन्द अति घणा ये ।*
*वरत्या जै जैकार, विरुद वधावणां ये ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग गुंड(गौंड) ६ (गायन समय - वर्षा ॠतु सब समय)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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११६ संत मिलन सुख । त्रिताल
आज हमारे भयो आनन्द,
मिले संत भागे दु:ख द्वंद्व ॥टेक॥
मंगलाचार मगन गुन गावैं,
अमृत धार होय झर लावैं ॥१॥
सुख सागर घर संत विराजे,
महा पतित जिव आय निवाजे१ ॥२॥
अधिक उछाह कह्यो नहि जाय,
कितेक२ महिमा कहूं बढाय ॥३॥
आदि अंत के कारज सारे३,
जन रज्जब आये सो प्यारे ॥४॥१०॥
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संतों के मिलन से होने वाले सुख को प्रकट कर रहे हैं -
✦ आज संतों के संमिलन से कामक्रोधादि द्वंद्वों से उत्पन्न हमारे दु:ख नष्ट हो गये हैं और आनन्द हो गया है ।
✦ बड़ा मंगल का आचरण हो रहा है । संत प्रभु प्रेम में निमग्न होकर प्रभु के गुण गान कर रहे हैं और ज्ञानामृत धारा रूप होकर ज्ञानामृत से युक्त वचन विन्दुओं का झड़ लगा रहे हैं ।
✦ सुख सागर रूप संत घर पर ही विराज रहे हैं और संसार में आकर महान पतित जीवों पर भी कृपा१ कर रहे हैं ।
✦ हमारे अत्याधिक उत्सव हो रहा है, उसकी महिमा कितनी२ ही बढा कर कहूं तो भी पूर्णरूप से नहीं कही जा सकती ।
✦ वे प्यारे संत जब से पधारे हैं, तब से हमारे सृष्टि के आदि से अंत तक के कार्य सिद्ध कर दिये हैं अर्थात कर्तव्य दृष्टि का अभाव करके, हमें मुक्त कर दिया है ।
(क्रमशः)
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