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*कबहुँ न बिहड़ै सो भला, साधु दिढ मति होइ ।*
*दादू हीरा एक रस, बाँध गाँठड़ी सोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गौड़ बंगाल के प्रसिद्ध पाँच महन्त*
*छप्पय-*
*पाँच महन्त प्रसिद्ध भये, ज्ञानि गौड़ बंगाल मधि ॥*
*नित्यानन्द चैतन्य, कृष्ण भज लाहो लीयो ।*
*रूप सनातन राम, रटत उमग्यो अति हीयो ॥*
*जीव गुसांई क्षीर, नीर नित निर्णय कीयो ।*
*जै जै जै त्रयलोक, ध्यान ध्रुव ज्यों नहिं बीयो ॥*
*राघव रीति बड़ेन की, सब जानैं बोलैं न बधि ।*
*पांच महन्त प्रसिद्ध भये, ज्ञानि गौड़ बंगाल मधि ॥२४८॥*
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गौड़ बंगाल में ये पाँच महन्त प्रसिद्ध भक्त हुये हैं- १. प्रभु नित्यानन्दजी, २. चैतन्य महाप्रभूजी, ३. रूपजी, ४. सनातनजी और ५. जीवगोस्वामीजी। नित्यानन्द और कृष्ण चैतन्यजी ने श्रीकृष्ण का भजन करके अपने मनुष्य जन्म का पूर्ण लाभ प्राप्त कर लिया था। रूप और सनातन जी के हृदय तो रामजी का चिन्तन करते समय अति आनन्द से उमगा करते थे।
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जीवगोस्वामी ने जैसे हंस क्षीर नीर को अलग कर देता है और दूध का पान करता है, वैसे ही सत्य असत्य को अलग करके सत्यस्वरूप परमेश्वर को ही अपनाकर निर्णय किया कि परमेश्वर की भक्ति से ही कल्याण होता है। जिन परमेश्वर की तीनों लोकों में जय जय ध्वनि होती है, उसी परमेश्वर का ध्यान जीव गोस्वामीजी ने भक्त ध्रुव के समान दृढ़ता से किया था। उस ध्यान में द्वैत भाव तो आने ही नहीं दिया था।
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महापुरुषों की रीति नीति ऐसी ही होती है। वे सब जानते हैं किन्तु अपनी बड़ाई के लिये अधिक नहीं बोलते, जैसा पात्र होता है वैसा ही वचन बोलते हैं ॥२४८॥
(क्रमशः)
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