रविवार, 26 फ़रवरी 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३००

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३००)*
*राग सोरठ ॥१९॥**(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
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*३००. उपदेश चेतावनी । (धीमा ताल)*
*मन रे, राम रटत क्यों रहिये !*
*यहु तत बार बार क्यों न कहिये ॥टेक॥*
*जब लग जिह्वा वाणी, तो लौं जपिले सारंगपाणी ।*
*जब पवना चल जावे, तब प्राणी पछतावे ॥१॥*
*जब लग श्रवण सुणीजे, तो लौं साध शब्द सुण लीजे ।*
*श्रवणों सुरति जब जाई, ए तब का सुणि है भाई ॥२॥*
*जब लग नैंन हुँ पेखे, तो लौं चरण-कमल क्यों न देखे ।*
*जब नैनहुं कछु न सूझे, ये सब मूरख क्या बूझे ॥३॥*
*जब लग तन मन नीका, तो लौं जपिले जीवन जीका ।*
*जब दादू जीव आवै, तब हरि के मन भावै ॥४॥*
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भा०दी०-हे मनस्त्वं धनमदान्धः सन् किमर्थं रामनामजपसाधनं विस्मरसि । इदं साधनन्तु सर्व-साधनेभ्यो गरीयः । अतो राम-नाम्नः प्रतिक्षणं चिन्तनेन भाव्यम् । यावत्ते जिह्वा शक्ति: साध्वी तावत्त्वं रामनामजपसाधनं कुरु । अन्यथा प्राणान्तकाले पश्चात्तापो भवेत् । यावच्छ्रवणेन्द्रिये शब्द-श्रवणशक्तिरप्रतिहता तावत्वं सतामुपदेशं शृणु । श्रवणशक्तिनष्टे तु कथं श्रोष्यसि । यावन्नेत्रयोः दर्शनशक्तिरप्रतिहता तावत्त्वं प्रभुचरणयोः सतां च दर्शनं कुरु । अन्यथेन्द्रियाणां शक्तिहासे : दर्शनं वन्दनं कथं भवेयुः । अत: स्वस्थेन मनसा वाचा शरीरेण हरिनामजपसाधने कुरु तदेवत्वं हरिप्रियो भविष्यसि ।
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श्रीमद्भागवते उक्तम्
ये ऐषां पुरुष साक्षादात्मप्रभवमीश्वरम् ।
न भजन्त्यवजानन्ति स्थानाद् भ्रष्टाः पतन्त्यधः ॥
द्विषन्तः परकायेषु स्वात्मानं हरिमीश्वरम् ।
मृतके सानुबन्धेऽस्मिन् बद्धस्नेहा: पतन्त्यधः ॥
एत आत्महनोऽशान्ता अज्ञाने ज्ञानमानिनः ।
सीदन्त्यकृतकृत्या वै कालध्वस्तमनोरथाः ॥
हित्वाऽत्यायासरचिता गृहापत्यसुहृच्छ्रियः ।
तमोविशन्त्यनिच्छन्तो वासुदेवपराङ्मुखाः ॥
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हे मन ! तू धन के मद से अंधा होकर राम नाम साधन को क्यों भूल रहा है ? यह-साधन तो सब साधनों से श्रेष्ठ है । अतः प्रतिक्षण रामनाम चिन्तन ही करना चाहिये । जब तक तेरी जिव्हा शक्ति ठीक है, तब तक तू राम नाम जप ले । अन्यथा प्राणान्त में पश्चाताप करना पड़ेगा ।
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जब तक तेरी श्रवणेन्द्रिय काम कर रही है, तब तक तुम सन्तों के उपदेशों को सुनो । शक्ति के नष्ट होने पर तू क्या कर सकेगा ? जब तक नेत्रों में देखने की शक्ति है, तब तक तू भगवान् के चरण कमलों का दर्शन कर तथा सन्तों के चरणों को देखले । अन्यथा इन्द्रियों की शक्ति के नष्ट हो जाने पर तू कैसे श्रवण, मनन, दर्शन कर सकेगा ? स्वस्थ मन वाणी से हरि नाम जप का साधन कर, तब ही तू परमात्मा का प्यारा होगा ।
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भागवत में लिखा है कि –
जो मनुष्य इन वर्ण, धर्मों, आश्रमों में रहने वाला है और हरि को नहीं भजता है, प्रत्युत उनका अनादर करता है, वह स्थान, वर्ण, आश्रम और मनुष्य योनि से गिर अजता है । यह शरीर मृतक ही है, इसके सम्बन्धी भी मिथ्या ही हैं । जो अपने शरीर से तो प्रेम करता है, दूसरे शरीर में रहने वाले सर्वशक्तिमान् भगवान् से द्वेष करता है, उन मूर्खों का अधःपतन हो जाता है ।
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अज्ञान को ही ज्ञान मानने वाले आत्मघातियों को कभी शान्ति नहीं मिलती । काल भगवान् उनके मनोरथों पर पानी फेरते रहते हैं । उनके कर्मों की परम्परा नहीं मिटती और उनके हृदय की जलन, विषाद कभी नहीं मिटेंगे । जो लोग अन्तर्यामी भगवान् कृष्ण से विमुख हैं, वे अत्यन्त परिश्रम करके जो स्त्री, पुत्र, धन आदि इकट्ठे करते हैं, उनको अन्त में सब कुछ छोड़ देना पड़ता है और न चाहने पर भी विवश होकर नरक में जाना पड़ता है, अतः भगवान् का भजन करना चाहिये ।
(क्रमशः)

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