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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२९६)*
*राग नट नारायण १८*
*(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
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*२९६. मंगलाचरण (राज विद्याधर ताल)*
*नमो नमो हरि ! नमो नमो ।*
*ताहि गुसाँई नमो नमो, अकल निरंजन नमो नमो ।*
*सकल वियापी जिहिं जग कीन्हा, नारायण निज नमो नमो ॥टेक॥*
*जिन सिरजे जल शीश चरण कर, अविगत जीव दियो ।*
*श्रवण सँवारि नैन रसना मुख, ऐसो चित्र कियो ॥१॥*
*आप उपाइ किये जगजीवन, सुर नर शंकर साजे ।*
*पीर पैगम्बर सिद्ध अरु साधक, अपने नाम निवाजे ॥२॥*
*धरती अम्बर चंद सूर जिन, पाणी पवन किये ।*
*भानण घड़न पलक में केते, सकल सँवार लिये ॥३॥*
*आप अखंडित खंडित नाहीं, सब सम पूर रहे ।*
*दादू दीन ताहि नइ वंदित, अगम अगाध कहे ॥४॥*
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भा०दी०-हे हरे ! त्वां नमस्करोग्यहं पुन: पुन: । य: सर्वव्यापक: संकल्पमात्रेण सृष्टि रचयति तं प्रभुनारायणं नमस्करोमि । येनाऽऽनखाग्रात्शिरःपर्यन्तं करचरणाद्यङ्गोपाङ्गैः सुन्दरमिदं शरीरं वीर्य-जलबिन्दुमात्रेणाद्भुतं विरचितम् । स्वयं च जीवो भूत्वा प्राविशत् । सहायान्तरं विनैवाभिन्ननिमित्तोपादान कारणत्वेन ब्रह्म स्वयमेव जगद्रूपेण विवर्तितम् ।
उक्तं हि ब्रह्मसूत्रे भाष्ये
शङ्करस्वामिना- अस्य जगतो नामरूपाभ्यां व्याकृतस्यानेककर्तृत्वभौक्तृसंयुक्तस्य प्रतिनियितदेश-
कालनिमित्तक्रियाफलस्य मनसाऽप्यचिन्त्यरचनारूपस्य जमस्थितिभंगा: यतः सर्वज्ञात्सर्वशक्तेः कारणाद्भवति । तद् ब्रह्मज्ञेयम् । यथा नरशरीरं रचितं तथैव देवासुर-पशु-पक्षि-चराचर- जगत् तथा पृथिव्यादिपंचभूतानि महादेवादिदेवाः, पीरपैगम्बरादि सिद्धाः क्षणमात्रैणैव उत्पादिताः । भक्तेभ्यो भक्त्यर्थं स्वनाम-चिन्तनं दत्तम् । स च परमात्माऽखण्डः सर्वव्यापकश्च सर्वत्रास्ते । भक्तानां कार्य साधकः । सर्वभूतेषु समत्वेन स्थितोऽस्ति । स च वेदैरप्यगम्यो ऽगाधश्चास्ति, यस्मात्क्षणमात्रेणैवोत्पत्ति, स्थितिभङ्गा भवन्ति, तस्मै, परब्रह्मणे पुन: पुनर्नमस्करोमि ।
उक्तं हि सर्वोपनिषदत्सारसंग्रहे-
यस्मिन् सर्वे यतः सर्वे य: सर्वः सर्वतश्च यः ।
यश्चय सर्वमयो देवस्तस्मै सर्वात्मने नमः ॥
यतो वा इमानि भूतानि यश्च जायन्ते ॥
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हे हरे ! आपको मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ । जो सर्वव्यापक होते हुए संकल्पमात्र से सृष्टि की रचना करते हैं । उस नारायण को नमस्कार करता हूँ, जिसने नख से लेकर शिखा पर्यन्त हाथ पैर मुख आदि अंग-उपांगों के द्वारा इस शरीर को सुन्दर बनाकर वीर्य के बिन्दु मात्र से पैदा का दिया और स्वयं जीव बनकर इस शरीर में प्रविष्ट हो गया और बिना किसी की सहायता के अकेले ने ही अभिन्न निमित्तोपादान कारण बनकर इस जगत् बना डाला ।
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ब्रह्म सूत्र के भाष्य में शंकारचार्य जी ने लिखा है कि यह जगत् अनेक कर्ता भोक्ताओं से युक्त है तथा जिसमें देश काल निमित क्रिया फल आदि प्रतिनियत हैं, जिसकी रचना मन से भी नहीं जानी जा सकती है, ऐसे अचिन्त्य नामरूपात्मक जगत् की रचना जिस सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् कारण से होती है, उसी को ब्रह्म कहते हैं ।
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जैसे नर शरीर सुन्दर बनाया वैसे ही देवता, पशु, पक्षी, चराचर जगत् तथा पृथ्वी आदि पंचभूत महादेव, पीर पैग़म्बर, सिद्ध आदि जगत् को भी क्षण मात्र में पैदा कर दिया । अपने भक्तों को भक्ति करने के लिये नाम चिन्तन प्रदान किया । स्वयं सर्वव्यापक अखण्ड रूप से सर्वत्र रहता है । भक्तों के कार्य को सिद्ध करने वाला सब प्राणियों में समरूप से विराजमान है, जिसके क्षणमात्र में जगत् की उत्पत्ति, स्थिति भंग होते ही रहते हैं । जो अगम अगाध है, जिसको वेद भी नहीं जान सके । उस परब्रह्म परमात्मा को मेरा पुनःपुनः नमस्कार हो ।
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सर्वोपनिषद्संग्रह में –
जिसमें यह सारा संसार कल्पित है, जिससे यह पैदा होता है, जो सर्वत्र सर्वरूपमय सर्वदेवमय है, उस सर्वात्मा को मेरा नमस्कार हो, “यतो वा इमानि भूतानि” यह श्रुति भी उसी ब्रह्म में जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय को कह रही है ।
(क्रमशः)
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