🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#संतटीलापदावली* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू ये सब किसके ह्वै रहे, यहु मेरे मन माँहि ।*
*अलख इलाही जगत-गुरु, दूजा कोई नांहि ॥*
.
*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
===========
देषि चालौ रे बीरा देषि चालौ रे ॥
कलिजुग घोर अंधार है, तामैं हाथ न घालौ रे ॥टेक॥
कै सोफी कै सन्तजन, घरि बैठां आवै रे ।
ताकूं१ सुष संतोष दे, तूं कांइ दुषावै२ रे ॥
जैंनबोध जोगी जती, सिंन्यासी कोई रे ।
साहिब कै नातै मिलै, भारी सुख होई रे ॥
जिहिं जो धारी सो करै, अपणीं३ जिनि छाड़ो रे ।
साध कहैं सो कीजिए, थे रांति न मांडो रे ॥
साध कहावौ देस में, क्यूं करौ लड़ाई रे ।
कोई रोस न मांनि४ यूँ, कह टीलौ भाई रे ॥३७॥
(पाठान्तर : १. ताकौं, २. सतावै, ३. अबर्णी, ४. मांनि यौं, ५.टीला)
.
हे भाई ! देखकर चलो, सोच-विचारकर आचरण करो । कलियुग घोर अन्धकार रूप है । इसमें हाथ मत डालो, इसमें अनुरक्त मत होओ ।
.
या तो सूफी महात्मा या साधु-सन्तजन घर बैठे ही सत्संग करने को आते हैं । उनको सुख और सन्तोष=शान्ति देने का प्रयत्न करो । अरे ! उनको सुख-शान्ति नहीं दे सकते हो तो दुख भी क्यों देते हो । जैन, बौद्ध, योगी यती, संन्यासी चाहे कोई भी हो, ये सभी साहिब की बातें सुनाने के लिए आते हैं, मिलते हैं । इनके मिलने से अखण्डानन्द रूप स्वात्मतत्व का बोध होता है । जिन्होंने जिस सिद्धांत को धारण कर लिया है, वे उसी को मानते रहें । किसी को भी अपने सिद्धांत को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है ।
.
ब्रह्मनिष्ठ साधु-सन्त जो बातें बताते हैं उन्हीं को मानो तथा उन्हीं पर अमल करो । आप व्यर्थ ही रांति=झगड़ा मत पैदा करो । आप अपने देश में साधु कहलाते हो । साधु होकर क्यों लड़ाई करते हो । हे साधुओं ! मेरी बातों पर क्रोधित मत होओ । मैं आपही का भाई टीला आपसे उक्त प्रकार कहता हूँ, निवेदन करता हूँ ॥३७॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें