सोमवार, 6 मार्च 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३०३

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३०३)*
*राग सोरठ ॥१९॥**(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
.
*३०३. प्रतिपाल*
*मन रे, अंतकाल दिन आया, तातैं यहु सब भया पराया ॥टेक॥*
*श्रवनों सुनै न नैनहुँ सूझै, रसना कह्या न जाई ।*
*शीश चरण कर कंपन लागे, सो दिन पहुँच्या आई ॥१॥*
*काले धोले वरण पलटिया, तन मन का बल भागा ।*
*जौबन गया जरा चल आई, तब पछतावन लागा ॥२॥*
*आयु घटै घट छीजै काया, यहु तन भया पुराना ।*
*पाँचों थाके कह्या न मानैं, ताका मर्म न जाना ॥३॥*
*हंस बटाऊ प्राण पयाना, समझि देख मन मांहीं ।*
*दिन दिन काल ग्रासै जियरा, दादू चेतै नाँहीं ॥४॥*
.
भादी०- रे मम मनस्तवान्तकाल: समुपस्थितोऽतस्त्वदीयं धनं परायत्तं जातम् । श्रवणाभ्यां न श्रूयते, नेत्राभ्यां न दृश्यते, वाचाऽपि न गद्यते, हस्तपादशिरांसि कम्पन्ते । केशा श्वेता: जाताः । शरीरं कुरूपं दुर्बलं च जातम् । मनोऽपि विकलायते । यौवनं गतप्रायम् । वृद्धत्वं समायातम् । अधुना त्वं पश्चात्तापं कुरुषे यत् न मा कल्याणसाधनं साधितमिति । आयुश्च मे क्षीणतामेति । शरीरञ्च जर्जरितम् । पञ्चेन्द्रियाणां ज्ञानमपि विलुप्तम् । नहि किमपि कार्य कर्तुं प्रभवन्तीन्द्रियाणि । हंसात्माऽपि गन्तुं त्वरते । प्राणा अपि प्रायो निष्प्राणतां गताः । अत: सावधानो भूत्वा पश्य, कालोऽयं प्रतिक्षणं तवायुर्घसते । तदपि त्वं न चेतसे ।
.
उक्तं हि योगवासिष्ठे-
अनित्यं यौवनं बाल्यं शरीरं द्रव्यसंचयाः ।
भावाद् भावान्तरं यान्ति तरङ्गवदनारतम्॥
वातान्तर्दीपक - शिखालोलं जगति जीवितम् ।
तडित्स्फुरणसंकाशा पदार्थ श्रीर्जगत्क्षये ॥
दिवसास्ते महान्तस्ते संपदस्ता क्रियाश्च ताः ।
सर्वं स्मृतिपथं यातं यामो वयमपि क्षणात् ॥
प्रत्यहं क्षयमायाति प्रत्यहं जायते पुनः ।
अद्यापि हतरूपाया नान्तोऽस्या दग्धसंसृतेः ॥
.
रे मन ! अब तेरा अन्तकाल आ गया है । अब तेरा धन भी पराया हो गया । कानों से सुनता नहीं, नेत्रों से दीखता नहीं । वाणी का बोल बन्द हो गया । हाथ, शिर, पैर कांपने लगे हैं । काले बाल सफेद हो गये । शरीर कुरूप और निर्बल हो गया । मन में भी विकलता छा गई । यौवन लुट गया । वृद्धावस्था आ गई ।
.
अब तू पश्चाताप करता है कि हाय, मैंने कल्याण के लिये कोई साधन नहीं किया, मेरी आयु ऐसे ही क्षीण हो गई । शरीर भी जीर्ण-शीर्ण हो गया । पाचों इन्द्रियों का ज्ञान भी प्रायः लुप्त हो गया, यह हंसात्मा भी जाने की जल्दी कर रहा है । प्राण भी प्रायः निष्प्राण से होते जा रहे हैं । हे मन ! अब भी सावधान होकर देख, यह काल तेरी आयु को प्रतिक्षण नष्ट कर रहा है और तू फिर भी नहीं चेतता ।
.
योगवासिष्ठ में लिखा है कि –
जवानी, बचपन, शरीर और द्रव्य-संग्रह ये सबके सब अनित्य हैं और जल तरंगों की तरह एक भाव से दूसरे भाव को प्राप्त होते रहते हैं । इस संसार में प्राणियों का जीवन हवा से भरे हुए स्थान में रखी हुई दीपक की लौ के समान चंचल है अर्थात् शीघ्र ही जाने वाली है । तीनों लोकों के संपूर्ण पदार्थों की शोभा(चमक-दमक) बिजली के चमक के समान क्षणिक है ।
.
हे महर्षे ! ये उत्सव और वैभव से सुशोभित होने वाले दिन, ये महा प्रतापी पुरुष, वे प्रचुर सम्पत्तियां तथा बड़े बड़े कर्म सबके सब दृष्टि-पथ से दूर होकर केवल स्मरण के विषय रह गये । इसी तरह हम भी क्षणभर में अज्ञात स्थान को चले जायेंगे । यह संसार प्रतिदिन नष्ट और पैदा होता है । अतः आज तक इस नष्टप्रायः जले हुए इस संसार का अन्त नहीं हुआ । अतः सावधान होकर हरि भजन करना चाहिये ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें