शुक्रवार, 31 मार्च 2023

*नारायण भट्ट*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*दादू दत्त दरबार का, को साधु बांटै आइ ।*
*तहाँ राम रस पाइये, जहँ साधु तहँ जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नारायण भट्ट*
*छप्पय-*
*श्रीनारायण भट्ट प्रभु, ब्रज-वल्लभ१ वल्लभ२ लगे ॥*
*नाचन गावन सरस, रास मण्डल रस वर्षे ।*
*ललितादिकन विहार, देख दंपति मन हर्षे ॥*
*महिमा बहु व्रज भई, देश उद्धारक जिय की ।*
*उत्सव प्रचुर प्रमाण, चाह इक है प्रिया पिय की ॥*
*राघव संत समाज में, प्रेम मगन निशि दिन जगे।*
*श्रीनारायण भट्ट प्रभु, व्रज वल्लभ वल्लभ लगै ॥२५३॥*
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श्रीनारायण भट्ट को व्रजवल्लभ प्रभु श्रीकृष्ण१ ही प्रिय२ लगते थे।
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आपका नाचना और गाना बड़ा ही सरस होता था। रास मंडल के समय आपके द्वारा महान् आनन्द की वर्षा होती थी। ललितादिक सखियों का विहार देखकर श्रीराधाकृष्णजी का मन वा दर्शक दंपतियों का मन हर्षित होता था।
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देश के जीवों का उद्धार करने वाली व्रज महिमा आपके द्वारा बहुत बढ़ गई थी। आप बहुत प्रमाण में भगवत् संबन्धी उत्सव कराया करते थे। आपके मन में एकमात्र श्रीराधाकृष्णजी के दर्शन की ही इच्छा रहती थी।
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आप संत समाज में प्रभुप्रेम में निमग्न होकर रात्रि दिन जगते रहते थे ॥२५३॥
(क्रमशः)

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