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*सो शर लागि प्रेम प्रकाशा, प्रकटी प्रीतम वाणी ।*
*दादू दीन दयाल ही जानै, सुख में सुरति समानी ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. २०३)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(६)भावावेश में श्रीरामकृष्ण*
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रथ के सामने कीर्तन और नृत्य करके श्रीरामकृष्ण कमरे में आकर बैठे । मणि आदि भक्त उनकी चरण-सेवा कर रहे हैं ।
भावमग्न होकर नरेन्द्र तानपूरा लेकर फिर गाने लगे - "ऐ प्राणों की पुतली, माँ, हृदयरमा, तू हृदय-आसन में आकर आसीन हो, मैं तेरा निरीक्षण करूँ ।”
"त्रिगुणरूपधारिणी, परात्परा तारा तुम्हीं हो ।" “तुम्हीं को मैंने अपने जीवन का ध्रुवतारा बना लिया है ।"
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एक भक्त ने नरेन्द्र से कहा - क्या तुम वह गाना गाओगे – ‘ऐ अन्तर्यामिनी माँ, तुम हृदय में सदा ही जाग रही हो ।’
श्रीरामकृष्ण – चल, इस समय ये सब गाने क्यों ? इस समय आनन्द के गीत हो – ‘श्यामा सुधा-तरंगिणी ।’
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नरेन्द्र गा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण गाना सुनते ही प्रेमोन्मत्त होकर नृत्य करने लगे । बड़ी दिर तक नृत्य करने के बाद उन्होंने आसन ग्रहण किया । भावावेश में नरेन्द्र की आँखों में आँसू आ गये । श्रीरामकृष्ण को देखकर बड़ा आनन्द हुआ । रात के नौ बजे का समय होगा । अब भी भक्तों के साथ श्रीरामकृष्ण बैठे हुए वैष्णवचरण का गाना सुन रहे हैं ।
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वैष्णवचरण ने दो गाने और गाये । तब तक रात के दस-ग्यारह बजे का समय हो गया । भक्तगण प्रणाम करके विदा हो रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - अच्छा, अब सब लोग घर जाओ । (नरेन्द्र और छोटे नरेंद्र की ओर इशारा करके) इन दोनों के रहने ही से हो जायेगा । (गिरीश से) क्या घर जाकर भोजन करोगे ? रहना चाहो तो कुछ देर रहो । तम्बाकू ! - अरे, बलराम का नौकर भी वैसा ही है । बुलाकर देखो - हरगिज न देगा । (सब हँसते हैं) परन्तु तुम तम्बाकू पीकर जाना ।
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श्रीयुत गिरीश के साथ चश्मा लगाये हुए उनके एक मित्र आये हैं । वे सब कुछ देख सुनकर चले गये । श्रीरामकृष्ण गिरीश से कह रहे हैं - "तुमसे तथा अन्य सभी से कहता हूँ, जबरदस्ती किसी को न ले आया करो, - बिना समय के आये कुछ नहीं होता ।"
एक भक्त ने प्रणाम किया । साथ एक छोटा लड़का है । श्रीरामकृष्ण सस्नेह कह रहे हैं - "अच्छा, बड़ी देर हो गयी है, फिर यह लड़का भी साथ है ।" नरेन्द्र, छोटे नरेन्द्र तथा दो-एक भक्त और कुछ देर रहकर घर गये ।
(क्रमशः)
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