मंगलवार, 7 मार्च 2023

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*दादू रंग भर खेलौं पीव सौं,*
*तहँ बारह मास बसंत ।*
*सेवग सदा आनन्द है, जुग जुग देखूँ कंत ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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🕉️ *होली की हार्दिक शुभकामनाएं* 🕉️
"होली जैसा उत्सव पृथ्वी पर खोजने से न मिलेगा। रंग गुलाल है; आनंद उत्सव है। तल्लीनता का, मदहोशी का, मस्ती का, नृत्य का, नाच का-बड़ा सतरंगी उत्सव है। हंसी के फव्वारों का, उल्लास का, एक महोत्सव है। दीवाली भी उदास है, होली के सामने। 
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होली की बात ही और है। ऐसा नृत्य करता उत्सव पृथ्वी पर कहीं नहीं है। ठीक भी है, एक गहन स्मरण तुम्हारे भीतर जगता रहे कि इस जगत में सबसे बड़ी विजय नास्तिकता के ऊपर आस्तिकता की विजय है; कि सदा-सदा बार-बार तुम याद करते रहो कि आस्तिकता यानी आनंद।
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"आस्तिकता उदासी का नाम नहीं है। अगर आस्तिक उदास मिले तो समझना कि चूक हो गई है; बीमार है, आस्तिक नहीं है। अगर आस्तिक नृत्य से भरा हुआ न मिले तो समझना कि कहीं राह में भटक गया। कसौटी यही है।
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"धर्म उदासी नहीं है-नृत्य, उत्सव है। और होली इसका प्रतीक है। इस दिन "ना" पर "हां" की विजय हुई। इस दिन विध्वंस पर सृजन जीता। इस दिन अतीत पर वर्तमान विजयी हुआ। इस दिन शक्तिशाली दिखाई पड़नेवाले पर निर्बल-सा दिखाई पड़नेवाला बालक जीत गया। नये की, नवीन की, ताजे की विजय--अतीत पर, बासे पर, उधार पर। और उत्सव रंग का है। उत्सव मस्ती का है। उत्सव गीतों का है।"
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"धर्म उत्सव है-उदासी नहीं। यह याद रहे।और तुम्हें नाचते हुए, परमात्मा के द्वार तक पहुंचना है। अगर रोओ भी तो खुशी से रोना। अगर आंसू भी बहाओ तो अहोभाव के बहाना। तुम्हारा रुदन भी उत्सव का ही अंग हो, विपरीत न हो जाए।थके-मांदे लंबे चेहरे लिए, उदास, मुर्दों की तरह, तुम परमात्मा को न पा सकोगे, क्योंकि यह परमात्मा का ढंग ही नहीं है। जरा गौर से तो देखो, कितना रंग उसने लिया है !" 
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"तुम बेरंग होकर भद्दे हो जाओगे। जरा गौर से देखो, कितने फूलों में कितना रंग ! कितने इंद्रधनुषों में उसका फैलाव है ! कितनी हरियाली में, कैसा चारों तरफ उसका गीत चल रहा है ! पहाड़ों में, पत्थरों में, पक्षियों में, पृथ्वी पर,आकाश में-सब तरफ उसका महोत्सव है ! इसे अगर तुम गौर से देखोगे तो तुम पाओगे, ऐसे ही हो जाना उससे मिलने का रास्ता है।"
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गीत गाते कोई पहुंचता है, नाचते कोई पहुंचता है-
यही भक्त्ति का सार है-
ओशो
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