शुक्रवार, 24 मार्च 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १२८*

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*मन निर्मल थिर होत है, राम नाम आनंद ।*
*दादू दर्शन पाइये, पूरण परमानन्द ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग केदार ८(संध्या ६ से ९ रात्रि)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१२८ नाम बिना नाम शूद्ध नहीं । त्रिताल
नाम बिना मन निर्मल नहि होय,
आन१ उपाय अनन्त अघ२ लागैं, बहुत भांति करि जोय३ ॥टेक॥
योग यज्ञ जप तप व्रत संयम, करते हं सब लोय४ ।
धर्म नेम५ दान पुनि६ पूजा, सीझ्या७ सुण्या न कोय ॥१॥
भेष पक्ष नहीं घर बाहर, ज्ञान अज्ञान समोय८ ।
ज्ञानी गुणी शूर कवि पंडित, ये बैठे सब रोय ॥२॥
भरम न भूल समझ सुन प्राणी, यहु साबुण नहिं सोय९ ।
जन रज्जब मन होय न निर्मल, जल पाषाण हिं धोय ॥३॥९॥
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हरि नाम बिना मन शुद्ध नहीं होता यह कह रहे हैं -
✦ हरि नाम चिंतन बिना अन्य उपाय से मन निर्मल नहीं होता । बहुत प्रकार से विचार करके देख३ तो ज्ञात होगा, चित शुद्धि से अन्य१ उपाय यज्ञ करना, धर्म शाला बनाना, आदि से अनन्त पाप२ लगते हैं ।
✦ इसी कारण योग, यज्ञ, प्रभु नाम से भिन्न मंत्र जप, तप, व्रत, आसनादि से शरीर का संयम, वर्णश्रामादि धर्म, नियम५, दान, पुण्य६, प्रतिमा पूजा आदि बाह्य साधनों को सभी लोग४ करते हैं किंतु इससे मुक्त हुआ कोई भी नहीं सुना जाता । ✦ भेष की पक्ष तथा घर और घर के बाहर रहने की पक्ष, शास्त्र ज्ञान और अज्ञान की पक्ष भी इसमे मिलाओ८, ये पक्ष मुक्त नहीं कर सकते । इसलिये शास्त्र ज्ञानी गुणी, शुर-वीर, कवि, पंडित ये सब अपने अपने गुण का अभिमान करके मुक्ति के लिये बैठे रो रहे हैं अर्थात मुक्त नहीं हो सके हैं ।
✦ प्राणी तू भी भ्रम की बात से प्रभु का नाम सुमिरण करना मत भूल, संतों से नाम की विशेषतायें सुन कर समझ यह भ्रम की बात वह९ साबुन नहीं है, जो तेरे मन को निर्मल कर सके और पत्थर पूजा से तथा जल से धोने से मन निर्मल नहीं होता है । हरि नाम चिंतन से ही मन निर्मल होता है । अत: नाम चिंतन करना चाहिये । 
(क्रमशः)

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