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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२८. काल कौ अंग ९७/१००*
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जाता किन देख्या नहीं, किस घाट पैठा जाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, कौन पिता ? कौ माइ ? ॥९७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव जाता हुआ किसीने नहीं देखा कि वो किस घाट से जा रहा है ना ये पता चलता है कि अब उसके माता पिता कौन है ।
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लाख चौरासी योनि मंहि, जहां राख्या सोइ नांम ।
कहि जगजीवन पिता यह, माता मानी रांम ॥९८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि चौरासी लाख योनियों में हमें जिस योनि में जन्म मिलता है वह ही नाम धरा जाता है यथा मनुष्य, पक्षी पशु आदि । तब हम जानते हैं कि हमारे पिता कौन हैं व माता प्रभु स्वयं हैं जो हमें जन्म देते हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, मरी मरै सब कोइ ।
अपनै अपनै वौसरे२, जात न राखै कोइ ॥९९॥
{२. वोसरै-अवसर(विशेष समय)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु सब ही मरते हैं मृत्यु आने पर जब जिसका समय आजाता है तब उस जाते हुये जीव को कोइ नहीं रख सकता है ।
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दुख भला सुख ऊपज्या, करता सोच संभाल ।
कहि जगजीवन रांम घरि, कहा करै जम काल ॥१००॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वह दुख अच्छा है जिसके अंत में सुख मिले । प्रभु ही कर्ता हैं वे सोच कर ही सब काम करते हैं । संत कहते हैं कि प्रभु के घर में या राम धारण करनेवाले जीव को कभी यम त्रास नहीं होता है ।
(क्रमशः)
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