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*शब्दों मांहिं राम-रस, साधों भर दीया ।*
*आदि अंत सब संत मिलि, यों दादू पीया ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ शब्द का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर,राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भू व्रज की वन की बनिता जन,*
*जानत नांहिं सु देत दिखाई।*
*रीति उपासन की सु पुराण हु,*
*के अनुसार श्रृंगार लखाई ॥*
*आयसु पाय सु श्याम प्रभू करि,*
*आय लगे सु गोपेश्वर भाई ।*
*ग्रंथ करे तिन की इक बात,*
*सुने पुलके अखियाँ झर लाई ॥३१६॥*
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ब्रज भूमि और वृन्दावन के प्रधान प्रधान स्थानों को उस समय प्राय: कोई नहीं जानता था। रूप, सनातनजी ने श्रीकृष्ण चैतन्य की आज्ञानुसार वहाँ आकर वैसे ही सब दिखाया था जैसे शुकदेवजी ने वर्णन किया है।
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फिर आपने श्रृंगारप्रधान उपासना की रीति भी भागवत पुराण के अनुसार बताई थी, जो रसिक जनों को अति आनन्द प्रदान करती है।
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वृन्दावन में उस समय यमुनाजी, कुञ्जवन, तथा दो चार घर थे, अन्य कुछ नहीं था। वृन्दा देवी की पूजा के लिये लोगों को जाते सुनकर आप दोनों वहाँ गये, रात्रि को रहे। इनको वृन्दा देवी ने दर्शन दिया और अपनी मूर्ति निकाल कर स्थापन करने की आज्ञा दी। गाय बच्चा देती है तब कुछ दिन लोग वृन्दादेवी के दूध चढ़ाते हैं। फिर श्रीकृष्ण भगवान् की आज्ञा से गोपेश्वर महादेव जी के दर्शन किये।
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शिवजी ने अनुग्रह करके स्वप्न में ग्रंथरचना करने की प्रेरणा की। तब हरिभक्तिप्रधान "भक्ति रसामृत" आदि ग्रन्थों की रचना की। उन ग्रन्थों की एक एक बात सुनने से भी शरीर पुलकित होता है और नेत्रों से प्रेमाश्रुओं की झड़ी लग जाती है ॥
(क्रमशः)
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