गुरुवार, 30 मार्च 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १३०*

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*दादू सिद्धि हमारे सांइयां, करामात करतार ।*
*ऋद्धि हमारे राम है, आगम अलख अपार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग केदार ८(संध्या ६ से ९ रात्रि)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१३० अनन्यता । त्रिताल
हमारे सब ही विधि करतार,
धर्म नेम१ अरु योग यज्ञ जप, साधन सांई सार ॥टेक॥
पूजा२ अर्चा नौधा नामहि, शोधि३ किया व्यवहार ।
तीर्थ वरत सु नाम तुम्हारा, और नहीं अधिकार ॥१॥
वेद पुराण भेष पख४ भूधर८, तुझ शिर भर५ भार ।
बुधि विवेक बल ज्ञान गुसांई, और नहीं आधार ॥२॥
सकल धर्म करतूत६ कमाई, सब तुम ऊपर वार७ ।
जन रज्जब के जीवन रामा, निशि दिन मंगल चार ॥३॥११॥
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अपनी अनन्यता दिखा रहे हैं -
✦ सभी प्रकार से हमारे आश्रय सृष्टि कर्त्ता प्रभु ही हैं । धर्म, नियम१, योग, जप, सार रूप साधन, ये सब हमारे तो प्रभु ही हैं ।
✦ हमारी प्रतिष्ठा२ भी प्रभु कृपा ही है । हमारी अर्चना भक्ति तथा नवधा भक्ति प्रभु का नाम ही है । यह वचन बोलना रूप व्यवहार हमने विचार३ करके ही किया है । हमारे तीर्थ व्रत भी आपका नाम ही है । आपके बिना हम अपनत्त्व का अधिकार अन्य पर नहीं रखते अर्थात हम आपके बिना अन्य किसी को भी अपना नहीं समझते ।
✦ हे पृथ्वी८ को धारण करने वाले प्रभु ! आप ही हमारे वेद पुराण और भेष आदि की पक्ष४ हैं । आपके शिर पर ही हमारा पूरा५ भार है । प्रभो ! हमारे बुद्धि, विवेक, बल, ज्ञान आप ही हैं । आपके बिना हमारा आधार और कोई नहीं है ।
✦ हम अपना संपूर्ण धर्म और कर्म६ रूप कमाई आप पर निछावर७ करते हैं । हे राम ! आप ही हमारे जीवन रूप हैं । आप की कृपा से ही हमारे रात्रि दिन मंगल का आचार व्यवहार होता रहता है ।
(क्रमशः)

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