सोमवार, 27 मार्च 2023

बाबा लाज तूंनैं हो

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*दादू जिन पहुँचाया प्राण को, उदर उर्ध्व मुख खीर ।*
*जठर अग्नि में राखिया, कोमल काया शरीर ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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बाबा लाज तूंनैं हो ।
तूं साहिब सिर ऊपरैं, कांई चिन्ता मूंनैं हो ॥टेक॥
बालक सोवै गोद में, माता दुलरावै हो ।
बाकौं तन की सुधि नहीं, वा दूध पावै हो ॥
गरभवास मैं राषिया, बहू च्यंता कीन्हीं हो ।
पाँचौं तत मिलाइ करि, काया करि दीन्हीं हो ॥
अनेक जुगां तैं राषिया, केताक बषांणौं हो ।
टीला कौं अब राषिलै, तौ साहिब जांणौं हो ॥३८॥
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विनती करते हुए कहते हैं, हे बाबा ! मेरी लाज तुझको है । यदि मैं तेरी शरण में रहकर भी विपदाग्रस्त हो गया, पतित हो गया, नरकगामी हो गया तो तुझको ही लज्जित होना पड़ेगा । अतः मेरी लाज रखने का दायित्व तेरा ही है । हे साहिब ! तू मेरे सिर के ऊपर है । अतः अब मुझे मेरी तनिक सी भी चिन्ता-फ़िक्र नहीं है कि मेरा क्या होगा ॥टेक॥
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बालक माता की गोदी में निश्चिन्त होकर सोता है और माता उसको दुलराती है, उससे प्रेम करती है, उसे दुत्कारती नहीं है । बालक को अपने शरीर को कोई सुध-बुध नहीं होती है । माता स्वयं ही उसकी चिन्ता करके उसके शरीर के पुष्ट्यर्थ उसको दूध पिलाती है ।
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हे परमप्रभु-परमात्मा ! आप जीव को गर्भवास-काल में रक्षा करते हैं । उसकी भलाई के लिए सर्वविध चिन्ता करके उसको वहाँ सुरक्षित रखते हैं । आहार-पानी का प्रबन्ध करते हैं । जठराग्नि से जलने से बचाते हैं । माता के गर्भ में ही पाँचों तत्त्वों को मिलाकर काया का निर्माण कर देते हैं जिसमें जीव सुखपूर्वक रह पाता है ।
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आप अनेक युगों से रक्षा करते आ रहे हैं । मैं उन उपकारों का कहाँ तक वर्णन करूँ । हे साहिब ! मैं टीला आपको साहिब तबही जानूँगा जब अबकी बार मुझे आप अपनी अभय, अक्षय, अखण्डानन्द रूप शरण में रख लोगे ॥३८॥
(क्रमशः)

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