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*दादू राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार ।*
*विषम व्याधि थैं ऊबरै, काया कंचन सार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग केदार ८(संध्या ६ से ९ रात्रि)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१२६ । दादरा
है हरि नाम नर नष्ट निकलंक१,
पतित पावन प्राणि परसत२, राव सुमिरों रंक ॥टेक॥
नाम चंदन लागि पलटत, वपु वनी वंश३ वंक ।
होत सकल सुगंधि, संगति, वास दुर्गंध ढंक९ ॥१॥
नाम पारस लाग लोहा, भेंटि मेटत अंक ।
साधु सोना होत देखत, बिकत महँगे-टंक४ ॥२॥
आराध५ औषधि जीव रोगी, राखि पछ६ नित फंक७ ।
रज्जब यूं रहत निशि दिन, होत निमन८ निशंक ॥३॥७॥
✦ हे नर ! नाम निष्कलंक१ साधन है, नाम स्मरण करने वाला प्राणी राजा हो या रंक हो पतित पावन प्रभु से जा मिलता२ है ।
✦ जैसे चंदन से वन के वृक्ष बदल जाते हैं, वैसे ही नाम जप से प्राणी का शरीर बदल जाता है । उसमें कुल का दोष रूप बांका पन नहीं रहता । जैसे वृक्षों की दुर्गंध चंदन की सुगंध से ढक९ जाती है और सुगंध हो जाती है ।
✦ वैसे ही नाम जप करने वालों की संगति से दोष दब कर दिव्य गुण आ जाते हैं, पारस से स्पर्श होने पर लोहा सोना हो जाता है और चार४-मासे भी महँगा बिकता है, वैसे ही नाम स्मरण साधन से मिलकर जीव देखते देखते ही कर्म के अंक मिटा कर साधु हो जाता है और प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है ।
✦ जैसे रोगी पथ्य६ रखकर औषधि खाता७ है तब निरोग हो जाता है, वैसे ही जीव नाम स्मरण रूप उपासना५ सदाचार से करता है, वह जन्मादि रोग से मुक्त हो जाता है । नाम स्मरण का साधक इस प्रकार रात्रि दिवस मौन८ रहकर स्मरण करता है और निशंक रहता है ।
(क्रमशः)
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