शनिवार, 18 मार्च 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३०७

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३०७)*
*राग सोरठ ॥१९॥**(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
.
*३०७. नाम महिमा । एक ताल*
*रामजी ! नाम बिना दुख भारी, तेरे साधुन कही विचारी ॥टेक॥*
*केई जोग ध्यान गह रहिया, केई कुल के मारग बहिया ।*
*केई सकल देव को ध्यावैं, केई रिधि सिधि चाहैं पावैं ॥१॥*
*केई वेद पुराणों माते, केई माया के संग राते ।*
*केई देश दिशंतर डोलैं, केई ज्ञानी ह्वै बहु बोलैं ॥२॥*
*केई काया कसैं अपारा, केई मरैं खड़्ग की धारा ।*
*केई अनंत जीवन की आशा, केई करैं गुफा में वासा ॥३॥*
*आदि अंत जे जागे, सो तो राम नाम ल्यौ लागे ।*
*इब दादू इहै विचारा, हरि लागा प्राण हमारा ॥४॥*
.
भा०दी०-रामनामचिन्तनं विना समस्तजगदिदं केवलं क्लेशभाजनमेव । प्रतीयत इदमेव सद्भिरुपदिष्टम् । किन्तु सांसारिका जनास्तु रामभजनं विहाय हठयोगेन घटचक्रमध्ये ध्याने स्थिताः तत्रैव निरुद्धा भवन्ति । के ते कुलधर्म प्रसंशन्ति । के ते देवानुपासते । के ते सिद्धिमृद्धि वाछन्तो तदर्थं यतन्ते । केतिपये वेदपुराणानि पठन्ति । के ते मायिकप्रपञ्चव्यवहारे कुशलिनो भवन्ति । केते देशाटनमेव प्रसंशन्ति । के ते शास्त्रज्ञानिन: शास्त्रमुपदिशन्ति । के ते पञ्चाग्निना तपन्ति शरीरं च तापयन्ति । के ते असिघारया प्रियन्ते । के ते कल्पान्तं जीवितुमिच्छन्ति । के ते गुहानिवासिनः सन्ति । एतानि बाह्य-साधनानि न रामनामसाधनतुल्यानि । अस्मिन् संसारे येऽपि ज्ञानिनो जातास्ते सर्वेऽपि-राम-नाम साधनेनैव । अतो मां रामनामैव रोचते । तस्यैव चिन्तनं करोमि ।
.
उक्तं हि भागवते 
इदं हिं पुसंस्तपस श्रुतस्य वा स्विष्टस्य सूक्तस्य च बुद्धिदत्तयोः ।
अविच्युतोऽर्थः कविभिर्निरूपितो यदुतमश्लोकगुणानुवर्णनम् ॥ 
आर्ता विषण्ण:शिथिलाश्च भीता घोरेषु च व्याधिषु वर्तमानाः ।
संकीर्त्य नारायणशब्दमात्रं विमुक्तदुःखा: सुखिनो भवन्ति ॥
.
यह सारा संसार राम नाम चिन्तन बिना केवल क्लेश का ही देने वाला है । ऐसा ही सन्तों का उपदेश है । किन्तु संसारी पुरुष तो राम नाम को छोड़कर कोई हठ-योग के द्वारा षटचक्रों में ध्यान करके वहीँ रुक गये । कितने ही कुलधर्म की प्रशंसा करते हैं । कितने ही देवोपासक बने हुए हैं । कितने ही ऋद्धि सिद्धि की प्राप्ति के लिये चक्कर लगा रहे हैं । कितने ही वेदवेदान्त पुराणों को पढ़ते हैं । 
.
कितने मायिकप्रपञ्च में कुशल हो रहे हैं । कितने ही दिन-रात देशाटन में ही लगे हुए हैं । कितने ही शास्त्रों का उपदेश करते हैं । कोई पंचाग्नि तप तपता है और शरीरों को कष्ट दे रहे हैं । कितने ही तलवार की धार से मर रहे हैं । कोई कल्पपर्यन्त जीवन की इच्छा के लिये यत्न कर रहे हैं । कितने ही गुफा-निवास करते हैं । किन्तु ये सब बाह्य साधन राम-नाम के बिना व्यर्थ ही हैं और न राम-नाम साधन की बराबरी कर सकते हैं । जितने भी ज्ञानी महात्मा हुए वे सब राम-नाम को जपकर ही हुए हैं, मैं भी राम नाम को जपता रहता हूं ।
.
भागवत में लिखा है कि –
विद्वानों ने अपने अनुभव से यही निश्चय किया है कि भगवान् के गुण-नाम-कीर्तन ही तप, वेदाध्ययन, उत्तम यज्ञ, यंत्र, ज्ञान, दान आदि का अविनाशी फल है । पढ़ने-लिखने का फल भी भगवन्नाम कीर्तन ही है ।
लोग चाहे आर्त हों, चाहे हिम्मत हार चुके हों, भयभीत हों, चाहे घोर व्याधि से घिरे हुए हों, जो ‘नारायण’ इति शब्द का कीर्तन कर लेते हैं, वे समस्त दुःखों से छुटकारा पा जाते हैं और सुखी हो जाते हैं ।      
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें