शनिवार, 11 मार्च 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १२४*

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*साहिब जी के नांव में, सब कुछ भरे भंडार ।*
*नूर तेज अनन्त है, दादू सिरजनहार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग केदार ८(संध्या ६ से ९ रात्रि)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१२४ नाम महिमा - पंजाबी त्रिताल
ह्वै हरि नाम सौं सब काज,
आदि अंत सु प्राण तारन, विषम१ जलधि२ जहाज ॥टेक॥
प्राण पोषण पंच शोषण, फेरि मंडण३ साज ।
गुन हूं गंजन पीर भंजन, देत अविचल राज ॥१॥
सृकुत जागैं कुकृत भागैं, सुन भजन की गाज ।
उरहु मंडन४ अघहु खंडन, देखते दुख भाज ॥२॥
धरे५ काढण अधर६ चाढण, जीव की सब लाज ।
नाम नीका७ धर्म टीका८, रज्जबा शिर ताज९ ॥३॥५॥
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१२४-१२७ में नाम महिमा कर रहे हैं -
✦ हरि नाम चिंतन से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं । नाम सृष्टि के आदि से अंत तक प्राणियों को तारने के लिये भयंकर१ संसार-सागर२ में जहाज रूप है ।
✦ प्राणियों को पोषण करने वाला है, पंच ज्ञानेन्द्रियों के विषय राग रूप रस को सुखाने वाला है । संसार भावना से बदल कर शरीर रूप साज को परमार्थ से सजाने३ वाला है । आसुर गुणों नष्ट करता है, संसार दु:ख को नाश करके ब्रह्म स्वरूप की प्राप्ति रूप अविचल राज पद देने वाला है ।
✦ नाम भजन की गर्जना सुनकर सुकर्म जग जाते हैं अर्थात होने लगते हैं । कुकर्म भाग जाते हैं । पापों को नष्ट करके हृदय को दैवी गुणों से सजाता४ है । देखते देखते प्राणी के दु:खों को भगा देता है ।
✦ मायिक५ संसार से निकालने वाला है, ब्रह्म६ रूप में स्थित करने वाला है । सब प्रकार से जीव रखने वाला है । ब्रह्म६ रूप स्थित करने वाला है । सब प्रकार से जीव की लज्जा रखने वाला है । नाम सब साधनों से श्रेष्ठ७ है, सर्व धर्मों का सरदार८ है और मेरे शिर का मुकुट९ ही है अर्थात शिरोधार्य है ।
(क्रमशः)

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