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*दुख दरिया संसार है, सुख का सागर राम ।*
*सुख सागर चलि जाइए, दादू तज बेकाम ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भक्त जगत तारक नौका*
*छप्पय-*
*सप्त द्वीप नव खंड में, भक्त जगत की नाव ॥*
*मथुरा सदन सुधान, पुरी पूरण श्रुति गावै।*
*शुभकृत बिन बस थान, मुक्ति कोई नहिं पावै ॥*
*संत सु कीर्ती वर्ण, काल कर्म जिन से डरपे ।*
*तन मन धन सर्वस्व, साधु साहिब को अरपै ॥*
*राघव रटवै रामजी, जहां जहाँ धारे पाव ।*
*सप्त द्वीप नव खंड में, भक्त जगत की नाव ॥२५६॥*
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सात द्वीप और नवखंडों में जितने भक्तजन हैं, वे जगत के जीवों को संसार सागर से पार करने के लिये नौका रूप हैं।
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भक्तों का सुन्दर स्थान मथुरा पुरी है। जिसको श्रुति ने ऋद्धि सिद्धि आदि ऐश्वर्य से पूर्ण कहा है। किन्तु उस स्थान में भी भक्तिरूप शुभकृत के बिना बस कर कोई भी मुक्ति नहीं पा सकता ।
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अतः जिनसे काल-कर्म भी डरते हैं, उन सुन्दर कीर्ति वाले संतों का ही वर्णन करना कल्याणप्रदाता है। संतजन अपना तन, मन, धन आदि सर्वस्व संतों को तथा भगवान् को ही समर्पण करते हैं और ...
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जहाँ जहाँ संत जन पधार कर अपने चरण रखते हैं, वहाँ की जनता रामजी का नाम रटने लगती है ॥२५६॥
(क्रमशः)
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