रविवार, 9 अप्रैल 2023

*श्रीरामकृष्ण का ईश्वर-दर्शन*

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*हरि जल नीर निकट जब आया,*
*तब बूँद बूँद मिल सहज समाया ॥*
*नाना भेद भ्रम सब भागा,*
*तब दादू एक रंगै रंग लागा ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ६४)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(९)श्रीरामकृष्ण का ईश्वर-दर्शन*
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श्रीरामकृष्ण भक्तों से उसी कमरे में बातचीत कर रहे हैं । महेन्द्र मुखर्जी, बलराम, तुलसी, हरिपद, गिरीश आदि भक्तगण बैठे हुए हैं । गिरीश श्रीरामकृष्ण की कृपा प्राप्त कर सात-आठ महीने से आते-जाते हैं । मास्टर गंगा-स्नान करके आ गये, श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके उनके पास बैठे । श्रीरामकृष्ण अपने अपूर्व दर्शन की बातें सुना रहे हैं –
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"कालीमन्दिर में एक दिन नागा और हलधारी अध्यात्मरामायण पढ़ रहे थे । मैंने एकाएक एक नदी देखी, उसके पास ही वन था - हरे रंग के पेड़-पौधे, और जाँघिया पहने हुए राम और लक्ष्मण चले जा रहे थे । एक दिन मैंने कोठी के सामने अर्जुन का रथ देखा था । सारथी के वेश में श्रीकृष्णजी बैठे हुए थे । वह अब भी मुझे याद है ।
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"एक दिन और, देश में (कामारपुकुर में) कीर्तन हो रहा था । सामने मैंने गौरांग की मूर्ति देखी ।
"एक नंगा आदमी मेरे साथ घूमता था । उससे मैं खूब मजाक करता था । वह नंगी मूर्ति मेरे ही भीतर से निकलती थी, परमहंस मूर्ति, बालकवत् ।
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"ईश्वर के कितने रूपों के दर्शन हो चुके हैं, कुछ कहा नहीं जा सकता । उस समय मुझे पेट की सख्त बीमारी थी और वह उन सब दर्शनों के समय और भी अधिक बढ़ जाती थी । इसलिए जब मुझे वे दर्शन होते थे तब मैं उन पर 'थू थू' करने लगता था, - परन्तु वे तो मेरे पीछे भूत के समान लग जाते थे । इन रूपों के भावावेश में मैं मस्त रहा करता था और रात-दिन न जाने कहाँ बीत जाते थे । दूसरे दिन फिर दस्त आने लगते थे ।" (हास्य)
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गिरीश (सहास्य) - आप की जन्मपत्री देख रहा हूँ ।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - द्वितीया के चन्द्र में जन्म है । और रवि, चन्द्र और बुध को छोड़ और कोई बड़ी बात नहीं है ।
गिरीश - कुम्भराशि है । कर्क और वृष में राम और कृष्ण का जन्म है - सिंह में चैतन्यदेव का ।
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श्रीरामकृष्ण - मुझमें दो वासनाएँ थीं, - पहली यह कि मैं भक्तों का राजा होऊँगा; दूसरी, तपस्या के मारे सूख जानेवाला साधु न होऊँगा ।
गिरीश - आपको साधना क्यों करनी पड़ी ?
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - भगवती ने शिव के लिए बड़ी कठोर साधना की थी - पंचाग्नि तापना, जाड़े में पानी के भीतर गले तक डूबकर रहना, सूर्य की ओर एकदृष्टि से ताकते रहना ।
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"स्वयं कृष्ण ने राधायन्त्र लेकर बहुतसी साधनाएँ की थीं । यन्त्र ब्रह्मयोनि है – उसी की पूजा और ध्यान । इस ब्रह्मयोनि से कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों की सृष्टि हो रही है ।
"बड़ी गुप्त बात है । बेल के नीचे मैं उसे चमकते हुए देखा करता था ।
"यहाँ तन्त्र की बहुतसी साधनाएँ मैंने की थी, मुर्दे की खोपड़ी लेकर । ब्राह्मणी (श्रीरामकृष्ण की तान्त्रिक आराधना की आचार्या) सब सामग्री इकट्ठा कर देती थी ।
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"एक अवस्था और होती थी । जिस दिन में अहंकार करता था उसके दूसरे ही दिन बीमार पड़ता था ।"
सब लोग चुपचाप बैठे हुए हैं ।
तुलसी - ये (मास्टर) नहीं हँसते ।
श्रीरामकृष्ण - भीतर हँसी है, फग्लु-नदी के ऊपर बालू रहती है और खोदने पर भीतर पानी मिलता है ।
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(मास्टर से) "तुम जीभ नहीं छीलते । रोज जीभ छीला करो ।"
बलराम - अच्छा, इनके (मास्टर के) द्वारा पूर्ण आपकी बहुतसी बातें सुन चुके हैं –
श्रीरामकृष्ण - पहले की बातें ये जानते हैं, मुझे याद नहीं ।
बलराम - पूर्ण स्वभावसिद्ध हैं, और ये (मास्टर) ?
श्रीरामकृष्ण - ये साधन मात्र हैं ।
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नौ बज चुके हैं । श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर जानेवाले हैं । इसी का प्रबन्ध हो रहा है । बागबाजार के अन्नपूर्णा-घाट में नाव ठीक की गयी है । श्रीरामकृष्ण को भक्तगण भूमिष्ठ हो प्रणाम करने लगे ।
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श्रीरामकृष्ण दो-एक भक्तों को लेकर नाव पर बैठे । गोपाल की माँ भी उसी नाव पर बैठीं - दक्षिणेश्वर में कुछ देर विश्राम करके पिछले पहर चलकर कामारहाटी जायेंगी ।
श्रीरामकृष्ण की कैम्प-खाट भी नाव पर चढ़ा दी गयी । इस पर श्रीयुत राखाल सोया करते थे । अगले शनिवार को श्रीरामकृष्ण फिर बलराम के यहाँ आयेंगे ।
(क्रमशः)

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