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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*३०. अपारिख कौ अंग १/३*
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कहि जगजीवन परख१ बिन, सांच न सक्या पिछांनि ।
हीरा को कंकर कहै, हो जाइ तन की हांनि ॥१॥
(१. परख=परीक्षा, कसौटी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बिना परख के सत्य की पहचान नहीं होती जो हीरे को कंकर कहते हैं वे स्वयं कुसंग में पड़कर अपनी देह की हानि करते हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, पंच पदारथ खोटि२ ।
प्रांण परख बिन गमावै, कौड़ी साटै कोटि ॥२॥
२. पंच पदारथ खोटि=पांचों तत्त्वों की हानि ।
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पांच पदार्थ हमारी इन्द्रियाँ, ही खोट के स्थान है । वो जीव परख के बिना कौड़ी के बदले करोड़ो का मूल्य गंवा देते हैं उन्हें पहचान ही नहीं होती है ।
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कहि जगजीवन परब तौ, भख्यौ बिरांणी३ भाख४ ।
बिन हरि पारिख संग रह्यौ, ता थैं बूडा लाख ॥३॥
(३. विराणी=दूसरे की) (४. भाख=कही हुई बात)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव परख के फेर में दूसरों की कही बातें ही कहते हैं । यदि परमात्मा के बिना हम जिसे पारखी समझते हैं वे संग भी रहे तो जानें कि हमने लाखो गंवा दिये ।
(क्रमशः)
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