बुधवार, 12 अप्रैल 2023

कहु मैं तेरा क्या किया

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*गुनहगार अपराधी तेरा, भाजि कहाँ हम जाहिं ।*
*दादू देख्या शोध सब, तुम बिन कहीं न समाहिं ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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कहु मैं तेरा क्या किया, तैं ज्वाब न दीया ।
बिन देषें हूँ१ क्यूं रहूं२, क्या मेरा हीया ॥टेक॥
गुनहगार कूं३ पकड़िये, गहिये कर हाथा ।
गुनह बकसि फिल कीजिए, करिये नहिं घाता ॥
कौंण दोष बोलै नहीं, सो जीव न बूझै ।
आगैं पीछैं अंतिव्है, पिय तुम्ह कूं सूझै ॥
गुर दादू कहै सु कीजिये, मैं बंदा तेरा ।
टीला कै दूजा नहीं, तूं साहिब मेरा ॥४४॥
(पाठान्तर : १. हौं, २. क्यौं, ३. कौं)
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कहो, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? तूने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है । मैं मेरे दोषों को जाने बिना कैसे रह सकता हूँ कि मेरा क्या हुआ है ?
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मुझ गुनहगार के हाथ को अपने हाथ में लेकर पकड़ लीजिए । गुनाहों को माफ करने में शीघ्रता करो ।
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मारो मत । दोष कौन से हैं, जिनको बताते नहीं हो क्योंकि वे गुन्हा मुझे सूझ नहीं रहे हैं । जो भी दोष आगे, पीछे या अन्त में होते हैं वे सभी आप को ज्ञात हो जाते हैं ।
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मैं तेरा बन्दा हूँ । गुरुमहाराज दादूजी कहते हैं, वही करो । टीला का आपके अतिरिक्त और दूसरा कोई भी स्वामी नहीं है । मेरा स्वामी तो मात्र तू ही है ॥४४॥
(क्रमशः)

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