मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

पंडित अपणैं घरिं जांहिं भाई

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*नांव न आवै तब दुखी, आवै सुख संतोष ।*
*दादू सेवक राम का, दूजा हर्ष न शोक ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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पंडित अपणैं घरिं जांहिं भाई ।
हम तुम बात कहण की नांहीं, काहे करै लड़ाई ॥टेक॥
हम गरीब परमेसुर सेवैं१, तुम्ह ब्रह्मा का नाती ।
अहं बिकार बुराई राते, हम तुम जाति न पांती ॥
सुमिरण करैं सहज में बैठे, तहीं आइ दुंद उठावै ।
धरम करम की बात चलावै, निर्मल नांव न भावै ।
जप तप संजम एक२ नांव मैं, जो सेवै सो पावै ।
गुर दादू किरपा करि दीनीं, टीलौ बंदौ गावै ॥४७॥
(पाठान्तर : १. सुमिरैं, २. येक)
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हे पंडित भाई ! तुम अपने घर जाओ । हमारे पास तुमसे कहने के लिए कोई बात नहीं है । अतः तुम क्यों व्यर्थ ही लड़ाई करते हो ।
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हम गरीब साधु हैं । परमेश्वर का भजन करते हैं । जबकि तुम ब्रह्मा के पौत्र हो । इसके उपरान्त भी तुम अहंकार, विषय-विकार और बुराई में आकण्ठ डूबे पड़े हो । वस्तुतः हमारी और तुम्हारी न एक जाति है और न भोजन करने की ही एक पंक्ति है ।
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हम भगवद्भजन करते हैं, सहज में रहते हैं, कोई उपाधि, उपद्रव नहीं करते, किसी को अदाते-सताते नहीं । फिर भी तुम यहाँ आकर द्वन्द्व=उपद्रव, झंझट-झगड़े करते हो । आप यहाँ आकर भ्रम और कर्मों की बातों को करते हो जबकि आपको परमात्मा का निर्मल नाम नहीं भाता ।
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जप, तप, संयम सब कुछ एक भगवन्नाम का आश्रय ले लेने से स्वतः ही सध जाते हैं । जो भगवन्नामजप करते हैं उनको इन सब का फल स्वयमेव प्राप्त हो जाता है । गुरुमहाराज दादूजी ने कृपा करके भगवन्नामजप का उपदेश दिया है जिसको दास टीला गा रहा है ॥४७॥
(क्रमशः)

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