रविवार, 2 अप्रैल 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३१२

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३१२)*
*राग सोरठ ॥१९॥**(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
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*३१२. भक्ति निष्काम । सुरफाख्ता ताल*
*दर्शन दे राम ! दर्शन दे, हौं तो तेरी मुक्ति न माँगूं रे ॥टेक॥*
*सिद्धि न माँगूं, रिद्धि न माँगूं, तुम्ह ही माँगूं, गोविन्दा ॥१॥*
*जोग न माँगूं, भोग न माँगूं, तुम्ह ही माँगूं, रामजी ॥२॥*
*घर नहीं माँगूं, वन नहीं माँगूं, तुम्ह ही माँगूं, देवजी ॥३॥*
*दादू तुम बिन और न माँगूं, दर्शन माँगूं देहुजी ॥४॥*
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भा०दी०-हे प्रभो ! नाहं मुक्त्यवस्था याचे किन्तु भूयो भूयो दर्शनमेव याचे । अतो दर्शन दानेनानुगृह्णस्व । न च ऋद्धिसिद्धिं न च भोगयोगौ, न च गृहवासं वनवासं च याचे किन्तु स्वरूप-साक्षात्कारमेव । अत: कृपां कुरु । यतोहि योगजन्यसिद्धयः स्वर्गादिभोगा अपवर्गाश्च भगवद्-भक्त्याऽनायासेनैव भक्तैः प्राप्यन्ति । अतो भक्त्यार्थमेव यतेत, न तु भोगार्थमिति निर्गलितोऽर्थः ।
उक्तं हि- शिक्षापात्रे-
भक्तिमार्गे कृपामात्रं कारणं परमुच्यते ।
तेनैव मार्गे सकलं सिद्धिमेति न संशयः॥
भागवतेऽप्युक्तम्-
द्रव्यं कर्म च कालश्च स्वभावो जीव एव च
यदनुग्रहतः सन्ति न सन्ति यदुपेक्षया॥
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सामीप्य, सारुप्यादि जो मुक्ति की चार अवस्थायें हैं, उनमें से मैं कुछ भी नहीं चाहता । मैं तो आपके दर्शन चाहता हूं । अतः दर्शन देने की कृपा कीजिये और न ऋद्धि-सिद्धि, योग, भोग, गृहवास, वनवास ही चाहता हूं, किन्तु मैं तो आपके स्वरूप का साक्षात्काररूप दर्शन है, वह चाहता हूं । क्योंकि ऋद्धि-सिद्धि, भोग, स्वर्गादि-लोक, अपवर्ग यह सब भगवान् की भक्ति से स्वयं ही प्राप्त हो जाते हैं यदि भक्त चाहे तो । अतः इनको न मांग कर भगवान् की भक्ति की कामना करनी चाहिये ।
शिक्षापात्र में –
भक्ति के मार्ग में कृपापात्र ही उत्तम साधन है । इस कृपा से ही सकल सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं, इसमें संशय नहीं है ।
भागवत में –
द्रव्य, कर्म, काल, स्वभाव और जीव आदि भगवदनुग्रह के बल पर ही स्थित हैं । यदि भगवान् थोड़ी सी भी उपेक्षा कर दे तो कुछ भी शेष न रहे ।
(क्रमशः)

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