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*साधु मिलै तब हरि मिलै, सब सुख आनन्द मूर ।*
*दादू संगति साधु की, राम रह्या भरपूर ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधू का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद ११८~श्री नन्द वसु के मकान में शुभागमन*
*(१)बलराम के मकान में श्रीरामकृष्ण*
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श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बलराम के बैठकखाने में बैठे हुए हैं । मुख पर प्रसन्नता विराज रही है । इस समय दिन के तीन बजे होंगे । विनोद, राखाल, मास्टर आदि श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हैं । छोटे नरेन्द्र भी आये ।
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आज मंगलवार है, २८ जुलाई, १८८५, आषाढ़ की कृष्ण प्रतिपदा । श्रीरामकृष्ण सबेरे से बलराम के यहाँ आये हैं । भक्तों के साथ भोजन भी उन्होंने वहीं किया है । नारायण आदि भक्तों ने कहा है, 'नन्द वसु के घर में ईश्वरसम्बन्धी चित्र बहुत से हैं ।' आज दिन के पिछले पहर उनके घर जाकर श्रीरामकृष्ण चित्र देखेंगे ।
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एक ब्राह्मणी भक्त नन्द वसु के घर के पास ही रहती है, श्रीरामकृष्ण उसके घर भी जायेंगे । कन्या के गुजर जाने पर ब्राह्मणी दुखी रहा करती है । प्रायः दक्षिणेश्वर श्रीरामकृष्ण के दर्शन करने के लिए जाया करती है । अत्यन्त व्याकुलता के साथ उसने श्रीरामकृष्ण को निमन्त्रण भेजा है । उसके घर तथा एक और स्त्री-भक्त - गनू की माँ - के घर भी श्रीरामकृष्ण जानेवाले हैं ।
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श्रीरामकृष्ण बलराम के यहाँ आते ही बालक-भक्तों को बुला भेजते हैं । छोटे नरेन्द्र ने अभी उस दिन कहा था, 'मुझे काम रहता है, इसलिए सदा मैं नहीं आ सकता, परीक्षा के लिए भी तैयारी करनी पड़ रही है ।' छोटे नरेन्द्र के आने पर श्रीरामकृष्ण उनसे बातचीत करते हुए कह रहे हैं - "तुझे बुलाने के लिए मैंने आदमी नहीं भेजा ।"
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छोटे नरेन्द्र (हँसते हुए) - तो इससे क्या होता है ?
श्रीरामकृष्ण - नहीं भाई, तुम्हारा नुकसान होता है, जब अवकाश हो तब आया करो !
श्रीरामकृष्ण ने जैसे अभिमान करके ये बातें कहीं । पालकी आयी है । श्रीरामकृष्ण श्रीयुत नन्द बसु के यहाँ जायेंगे ।
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ईश्वर का नाम लेते हुए श्रीरामकृष्ण पालकी पर बैठे, पैरों में काली चट्टी, लाल धारीदार धोती पहने । मणि ने जूतों को पालकी की बगल में एक ओर रख दिया । पालकी के साथ साथ मास्टर जा रहे हैं । इतने में परेश भी आ गये ।
पालकी नन्द बसु के फाटक के भीतर गयी । क्रमशः घर का लम्बा आँगन पार करके पालकी मकान के द्वार पर पहुँची ।
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गृहस्वामी के आत्मीयों ने श्रीरामकृष्ण को आकर प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण ने मास्टर से चट्टियाँ निकाल देने के लिए कहा । पालकी से उतरकर वे ऊपर के दालान में गये । दालान बहुत लम्बा-चौड़ा है । चारों ओर देवी-देवताओं के चित्र टँगे हुए हैं ।
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गृहस्वामी और उनके भाई पशुपति ने श्रीरामकृष्ण से सम्भाषण किया । पालकी के पीछे पीछे भक्तगण भी आ रहे थे । अब वे भी उसी दालान में एकत्र होने लगे । गिरीश के भाई अतुल भी आये हुए हैं । प्रसन्न के पिता श्रीयुत नन्द वसु के यहाँ अक्सर आया-जाया करते हैं । वे भी वहाँ मौजूद हैं ।
(क्रमशः)
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