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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३२२)*
*राग सोरठ ॥१९॥**(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
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*३२२. संसार की नीकी विनती । दीपचन्दी ताल*
*निरंजन, कायर कंपै प्राणिया, देखि यहु दरिया ।*
*वार पार सूझै नहीं, मन मेरा डरिया ॥टेक॥*
*अति अथाह यह भौजला, आसंघ नहिं आवै ।*
*देख देख डरपै घणा, प्राणी दुख पावै ॥१॥*
*विष जल भरिया सागरा, सब थके सयाना ।*
*तुम बिन कहु कैसे तिरूं, मैं मूढ़ अयाना ॥२॥*
*आगै ही डरपै घणा, मेरी का कहिये ।*
*कर गहि काढ़ो केशवा, पार तो लहिये ॥३॥*
*एक भरोसा तोर है, जे तुम होहु दयाला ।*
*दादू कहु कैसे तिरै ! तूँ तार गोपाला ॥४॥*
हे परमेश्वर ! इस अगाध और अपार संसार समुद्र को देख कर मेरा और साधकों का मन डर रहा है । इसको कैसे पार करेंगे? यह विषय रूप जल से भरा हुआ है, इसी से यह अगाध है, क्योंकि विषयों को कोई भी त्याग नहीं सकता । संसार सागर से पार जाने में सम्बन्धी वर्ग भी बाधक बन जाता है ।
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इसकी भयंकरता को देख देख कर डर रहा हूं । बड़े बड़े बुद्धिमान् भी इस संसार को पार नहीं कर सके । कुछ जो पार पहुंचे हैं वे भी आपकी कृपा से ही पहुंचे हैं । मैं तो निर्बुद्धि और आपके स्वरूप के ज्ञान से अनभिज्ञ हूं । आपकी कृपा बिना कैसे पार कर सकता हूं ? मेरे से पहले भी इस संसार से भयभीत होकर बहुत मर गये और मर रहे हैं, तो आप ही कहिये, आपकी कृपा बिना कैसे पार पहुंचूंगा ?
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हे केशव ! आप अपने चरणों की भक्ति देकर मेरा उद्धार कर दीजिये, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मेरे पर दया करके मेरा अवश्य उद्धार करेंगे । हे गोपाल ! मैं अपने बल से इस संसार से पार नहीं जा सकता इसलिये आपकी दया चाहता हूं कि आप मुझे इससे पार करो ।
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श्रीरामानुजाचार्य जी लिख रहे हैं –
ब्रह्मा, शिव आदि देवता भी जिसकी वन्दना करते हैं, जो भक्तों की इच्छा के अनुसार परम सुन्दर एवं चिन्तन करने योग्य लीला-शरीर धारण करते हैं, जिनकी भक्ति अचिन्त्य है तथा उनके अभिप्राय को उनकी कृपा के बिना कोई नहीं जान सकता । उन श्रीकृष्ण भगवान् के चरणारविन्दों की कृपा के बिना जीव की दूसरी गति हो ही नहीं सकती ।
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जो अचिन्त्य दुस्तर संसार सागर से पार जाना चाहता है अथवा जो लोग अनेकों प्रकार के दुःख दावानल से दग्ध हैं, उनके लिये पुरुषोत्तम भगवान् की लीला-कथा-रूप-रस के सेवन के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं है, वे केवल लीला-रसायन का सेवन करके ही अपना मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं ।
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हे भूमन् ! मैं सभी योनियों में प्रिय के वियोग और अप्रिय के संयोग से उत्पन्न होने वाले शोकानल से संतप्त हो रहा हूँ । इस दुःख की इष्ट प्राप्ति रूप जो औषधि है वह भी दुःख ही है । अतः मैं देहादिअनात्मा में आत्मत्व बुद्धिकर अपने कर्मों से चिरकाल से भटक रहा हूँ । अतः आप अपने दास्यभाव का उपदेश दीजिये और मुक्ति देने वाले आपके चरणों में मुझे कब बुलायेंगे ।
(क्रमशः)
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