शनिवार, 5 अगस्त 2023

*अवतार तथा जीव*

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*दादू जब लग नैन न देखिये, साध कहैं ते अंग ।*
*तब लग क्यों कर मानिये, साहिब का प्रसंग ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(३)अवतार तथा जीव*
श्रीरामकृष्ण - (ईशान के प्रति) - तुम कुछ कहो; यह (डाक्टर) अवतार नहीं मान रहा है ।
ईशान - जी, अब क्या विचार करूँ ? विचार अब नहीं सुहाता ।
श्रीरामकृष्ण (विरक्ति से) – क्यों ? यथार्थ बात भी नहीं कहोगे ?
ईशान (डाक्टर से) - अहंकार के कारण हम लोगों में विश्वास कम है ।
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काकभुषुण्डि ने श्रीरामचन्द्रजी को पहले अवतार नहीं माना था । अन्त में जब चन्द्रलोक, देवलोक और कैलाश में उसने भ्रमण करके देखा कि राम के हाथ से उसका किसी प्रकार निस्तार ही नहीं हो रहा है, तब खुद वह राम की शरण में आया । राम उसे पकड़कर निगल गये ।
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भुषुण्डि ने तब देखा कि वह अपने पेड़ ही पर बैठा हुआ है ! उसका अहंकार जब चूर्ण हो गया तब उसने समझा कि राम देखने में तो मनुष्य की तरह हैं, परन्तु ब्रह्माण्ड उनके उदर में समाया हुआ है । उन्हीं के पेट में आकाश, चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, समुद्र, पर्वत जीव-जन्तु, पेड़-पौधे आदि हैं ।
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श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से) - इतना समझना ही मुश्किल है कि वे ही स्वराट् हैं और वे ही विराट् हैं । जिनकी नित्यता है, उन्हीं की लीला भी है । ‘वे आदमी नहीं हो सकते’ यह बात क्या हम अपनी क्षुद्र बुद्धि द्वारा कह सकते हैं ? हमारी क्षुद्र बुद्धि में क्या इन सब की धारणा हो सकती है ? एक सेर भर के लोटे में क्या चार सेर दूध समा सकता है ?
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“इसीलिए जिन साधु और महात्माओं ने ईश्वर को प्राप्त कर लिया है उनकी बात पर विश्वास करना चाहिए । साधु-महात्मा ईश्वर की ही चिन्ता लेकर रहते हैं, जैसे वकील मुकदमे की चिन्ता लेकर । क्या काकभुषुण्डि की बात पर तुम्हें विश्वास होता है ?”
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डाक्टर - जितना अच्छा है, उतने पर मैंने विश्वास कर लिया । पकड़ में आ जाने से ही हुआ, फिर कोई शिकायत नहीं रहती; परन्तु राम को कैसे हम अवतार मानें ? पहले बालि का वध देखो । छिपकर चोर की तरह तीर चलाकर उसे मारा । यह तो मनुष्य का काम है, ईश्वर का कैसे कहा जाय ?
गिरीश घोष - महाशय, यह काम ईश्वर ही कर सकते हैं ।
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डाक्टर - फिर देखो, सीता का परित्याग।
गिरीश घोष - महाशय, यह काम भी ईश्वर ही कर सकते है, आदमी नहीं ।
ईशान (डाक्टर से) - आप अवतार क्यों नहीं मानते ? अभी तो आपने कहा, जिन्होंने नाना रूपों की सृष्टि की है वे साकार हैं, जिन्होंने मन की सृष्टि की है वे निराकार हैं । अभी अभी तो आपने कहा, ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है ।
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श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - ईश्वर अवतार ले सकते हैं, यह बात इनके Science (विज्ञान) में नहीं जो है, फिर भला कैसे विश्वास हो ? (सब हँसते हैं)
"एक कहानी सुनो । किसी ने आकर कहा, ‘अरे, उस टोले में मैं देखकर आ रहा हूँ - अमुक का घर धँसकर बैठ गया है ।’ जिससे उसने यह बात कही, वह अंग्रेजी पढ़ा हुआ था । उसने कहा, 'ठहरो, जरा अखबार देख लूँ ।' अखबार उलटकर उसने देखा, वहाँ कहीं कुछ न था । तब उसने कहा, 'चलो जी, तुम्हारी बात का हमें विश्वास नहीं । कहाँ, घर के धँसकर बैठ जाने की बात अखबार में तो नहीं लिखी है ? यह सब झूठ खबर है !' (सब हँसे)
(क्रमशः)

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