🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू बातों ही पहुंचै नहीं, घर दूर पयाना ।*
*मारग पन्थी उठि चलै, दादू सोई सयाना ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ सांच का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*(५)अहंकार तथा विद्या का 'मैं'*
.
श्रीरामकृष्ण - अहंकार के बिना गये ज्ञानलाभ नहीं होता । ऊँचे टीले पर पानी नहीं रुकता । नीची जमीन में ही चारों ओर का पानी सिमटकर भर जाता है ।
डाक्टर - परन्तु नीची जमीन में जो चारों ओर का पानी आता है, उसके भीतर अच्छा पानी भी रहता है और दूषित भी । पहाड़ के ऊपर भी नीची जमीन है । नैनीताल, मानसरोवर ऐसे स्थान हैं जहाँ आकाश का ही शुद्ध पानी रहता है ।
.
श्रीरामकृष्ण - आकाश का ही शुद्ध पानी - यह बहुत अच्छा है !
डाक्टर - और ऊँची जगह का पानी चारों ओर काम में भी लाया जा सकता है ।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - एक सिद्ध ने मन्त्र पाया था । उसने पहाड़ पर खड़े होकर चिल्लाते हुए कह दिया – ‘तुम लोग इस मन्त्र को जपकर ईश्वर-लाभ कर सकोगे ।’
डाक्टर – हाँ ।
.
श्रीरामकृष्ण - परन्तु एक बात है, जब ईश्वर के लिए प्राण विकल होते हैं, तब यह विचार नहीं रहता कि यह पानी अच्छा है और यह बुरा । तब उन्हें जानने के लिए कभी भले आदमी के पास जाया जाता है, कभी बुरे आदमी के पास । उनकी कृपा होने पर गँदले पानी से कोई नुकसान नहीं होता । जब वे ज्ञान देते हैं, तब यह सुझा देते हैं कि कौन अच्छा है और कौन बुरा ।
.
"पहाड़ के ऊपर नीची जमीन रह सकती है, परन्तु वैसी जमीन बदजात 'मैं' - रूपी पहाड़ पर नहीं रहती । विद्या का 'मैं', भक्त का 'मैं' यदि हो, तभी आकाश का शुद्ध पानी आकर जमता है ।
“ऊँची जगह का पानी चारों ओर काम में लगाया जा सकता है, यह ठीक है । परन्तु यह काम विद्या के 'मैं' - रूपी पहाड़ से ही सम्भव है ।
.
"उनके आदेश के बिना लोक-शिक्षा नहीं होती । शंकराचार्य ने ज्ञान के बाद विद्या का 'मैं' रखा था - लोक-शिक्षा के लिए । उन्हें प्राप्त किये बिना ही लेक्चर ! इससे आदमियों का क्या उपकार होगा ?
.
"मैं नन्दनबाग के ब्राह्मसमाज में गया था । उपासना आदि के बाद उनके प्रचारक ने एक वेदी पर बैठकर लेक्चर दिया । उन्होंने वह लेक्चर घर पर तैयार किया था । लेक्चर वे पढ़ते जाते थे और चारों ओर देखते भी जाते थे । ध्यान करते समय वे कभी कभी आँखें खोलकर लोगों को देखते जाते थे !
"जिसने ईश्वर के दर्शन नहीं किये, उसका उपदेश असर नहीं करता । एक बात अगर ठीक हुई, तो दूसरी बेसिर-पैर की निकल जाती है ।
.
"सामाध्यायी ने लेक्चर दिया । कहा, 'ईश्वर वाणी और मन से परे हैं । उनमें कोई रस नहीं है - तुम लोग अपने प्रेम और भक्तिरस से उनकी अर्चना किया करो ।’ देखो, जो रसस्वरूप हैं, आनन्द-स्वरूप हैं, उनके लिए ऐसी बातें कही जा रही थीं । इस तरह के लेक्चर से क्या होगा ? इसमें क्या कभी लोक-शिक्षा होती है ? एक आदमी ने कहा था ‘मेरे मामा के यहाँ गोशाले भर घोड़े हैं ।’ गोशाले में घोड़ा ! (सब हँसते हैं) इससे समझना चाहिए कि घोड़ा-वोड़ा कहीं कुछ भी नहीं है !"
.
डाक्टर (सहास्य) – गौएँ भी न होंगी ! (सब हँसते हैं)
जिन भक्तों को भावावेश हो गया था, उनकी प्राकृत अवस्था हो गयी है । भक्तों को देखकर डाक्टर आनन्द कर रहे हैं ।
डाक्टर मास्टर से भक्तों का परिचय पूछ रहे हैं । पल्टू, छोटे नरेन्द्र, भूपति, शरद, शशी आदि लड़कों का, एक एक करके, मास्टर ने परिचय दिया ।
श्रीयुत शशी के सम्बन्ध में मास्टर ने कहा, 'ये बी. ए. की परीक्षा देंगे ।' डाक्टर कुछ अन्यमनस्क हो रहे थे ।
.
श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से) - देखो जी, ये क्या कह रहे हैं । डाक्टर ने शशी का परिचय सुना ।
श्रीरामकृष्ण (मास्टर को बताकर, डाक्टर से) - ये स्कूल के लड़कों को उपदेश देते हैं ।
डाक्टर - यह मैंने सुना है ।
.
श्रीरामकृष्ण - कितने आश्चर्य की बात है ! मैं मूर्ख हूँ, फिर भी पढ़े-लिखे लोग यहाँ आते हैं । यह कितने आश्चर्य की बात है ! इससे तो मानना पड़ता है कि यह ईश्वर की लीला है ।
आज शरद पूर्णिमा है । रात के नौ बजे का समय होगा । डाक्टर छः बजे से बैठे हुए ये सब बातें सुन रहे हैं ।
.
गिरीश - (डाक्टर से) - अच्छा महाशय, आपको ऐसा कभी होता है कि यहाँ आने की इच्छा न होते हुए भी मानो कोई शक्ति खींचकर यहाँ ले आती हो ? मुझे तो ऐसा होता है और इसीलिए आपसे भी पूछ रहा हूँ ।
डाक्टर - पता नहीं, परन्तु हृदय की बात हृदय ही जानता है । (श्रीरामकृष्ण से) और बात यह है कि यह सब कहने में लाभ ही क्या है ?
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें