सोमवार, 11 सितंबर 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १९०*

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*तुम बिन धणी न धोरी जीव का, यों ही आवै जाइ ।*
*जे तूँ साँई सत्य है, तो बेगा प्रकटहु आइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग कल्याण १७(संध्या ६ से ९ रात्रि)
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१९० झपताल
दीन की सुनिये अरदास१,
प्राणी पुकार कर्ण करि केशव, 
कपट कहिन कर्म की पाश ॥टेक॥
ब्रह्मा विष्णु ईश तेतीसों, 
दसों न तिनके दास ।
आदि अंत मधि मुक्ति करो तुम, 
यहु जीव इहिं विश्वास ॥१॥
और ठौर नांहीं ठिक ठाहर, 
मोचन२ नव ग्रह राशि ।
जन रज्जब जिव जट्यो३ जंजीरन, 
निरखत निकट निवासि ॥२॥२॥
✦ प्रभो ! मुझ दीन की विनय१ सुनिये, केशव ! मुझ प्राणी की पुकार पर ध्यान देकर, मेरे कठिन कर्मों की फाँसी को काटिये ।
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✦ ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, ११रूद्र, १२आदित्य, ८वसु, २ अश्विनीकुमार, इन तेतीस देवताओं के निवास स्थान में, मैं नहीं बसना चाहता । सृष्टि के आदि, मध्य और अंत तक आप ही मुक्ति प्रदान करते हो, यह आपका जीव इसी विश्वास से विनय कर रहा है ।
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✦ औरों के स्थानों से मुझे ठीक स्थान नहीं मिलेगा, आप ही नवग्रह राशि से मुक्त२ करने वाले हैं । और मेरे अत्यन्त समीप हृदय में निवास करने वाले प्रभो ! आप तो यह देख ही रहे हैं कि - मैं आपका जीव नाना प्रकार की वासना रूप जंजीरों से बँधा३ हुआ हूँ, कृपा करके मुझे मुक्त करिये ।.
(क्रमशः)

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