शनिवार, 16 सितंबर 2023

*३९. बिनती कौ अंग ६५/६८*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग ६५/६८*
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पंच तत्त तुम मंहि रहैं, प्रांण रहै ल्यौ लाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, सो मति दीजै आइ ॥६५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पांचो तत्व आप में है । और प्राण भी आपसे लय लगा बैठे ऐसी बुद्धि प्रदान करें ।
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दीनदयाल क्रिपाल हरि, मिहरवांन की महरि ।
कहि जगजीवन प्रेम की, घट मैं जागै लहरि५ ॥६६॥
(५. लहरि=तरंग)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे दयालु प्रभु कृपा करके मेहरबान हो मेहर कीजिये जिससे हमारे हृदय में भी प्रेम की लहर उठे ।
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कहि जगजीवन रांमजी, बात तुम्हारौ हाथ ।
जन कूं अपनौं६ जांन करि, राखहु हरि जी साथ ॥६७॥
(६. अपनौं=आत्मीय)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु अब हमारी बात आपके हाथों में है । आप हमें अपना जानकर अपने संग रखें ।
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जन कै आतम रांमजी, ज्यूं झखि७ नीर निवास ।
मिलि जीवै, बिछुरत मरै, सु कहि जगजीवनदास ॥६८॥
(७. झाखि=झष=मछली)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमारे तो प्रभु जी आप ही आत्म है हमारी स्थिति उस मछली की भांति है जो जल में जीवित रहती है व बाहर निकलते ही मर जाती है । आप हमारे जल स्वरूप हैं ।
(क्रमशः)

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