शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

दीयौ आडौ आवै

🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*दादू भोजन दीजे देह को, लिया मन विश्राम ।*
*साधु के मुख मेलिये, पाया आतमराम ॥*
=============
साहिब दे तौ देबौ कीजै, जो देवै सो पावै ।
बषनौं कहै दुहेली बरियाँ, दीयौ आडौ आवै ॥३॥
यदि परमात्मा ने कृपा करके धन दिया है तो दान अवश्य करना चाहिये क्योंकि जो देता है, वह अवश्यमेव कभी न कभी पाता भी है । बषनांजी कहते हैं, दुहेली = संकट की घड़ियों में दान दिया हुआ ही, आड़ौ = काम आता है, मिलता है ॥३॥
.
दादूजी महाराज ने फरमाया है ....
“दादू दीया है भला, दिया करौ सब कोय ।
घर मैं धर्या न पाइये, जो कर दीया न होय ॥”
द्वादस कोटि जग्गि मैं जीम्याँ, संष न बाज्यौ रह्या खिसाइ ।
बषनां संतराज घरि जिम्यौं, संख दारूड़्यौ मंगल गाइ ॥४॥
.
पांडवों द्वारा आयोजित यज्ञ में बारह करोड़ लोगों ने भोजन किया किन्तु शंख अपने आप नहीं बजा । परिणामतः पांडव अपने यज्ञ की अपूर्णता पर खिसाइ लज्जित होने लगे, दुखी होने लगे ।
.
भगवान् श्रीकृष्ण से संकेत पाकर भक्तराज सरगरा वाल्मीकि को आदर सहित यज्ञस्थल में लाकर जिमाया गया । जैसे ही सरगरा वाल्मीकि ने भोजनोपरांत आचमन किया, शंख अपने-आप दरूड़यौ = बज उठा । परिणामस्वरूप चारों ओर मंगलगान होने लगा ॥४॥
.
वर्तमान समय में, चतुर्थ वर्ण की एक जाति अपने आपको ‘वाल्मिकी-वंशी’ कहते हुए रामायण रचयिता आदिकवि से सम्बन्ध जोड़ती है जो सर्वथा भ्रामक तथा तथ्यहीन है । वस्तुतः उसका सम्बन्ध पाण्डवकालीन इस पद्य में वर्णित ‘सरगरा वाल्मिकी’ से है जो इतने महान् संत हुए कि जिनके भोजनोपरांत ही पाण्डवों के यज्ञ का साफल्य सिद्ध हो सका ।
इति साध पूजा महातम कौ अंग सपूर्ण ॥अंग ५५॥साषी ८९॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें