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*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग ७७/८०*
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कहि जगजीवन रांमजी, तुमहि माइ तुम्हि बाप४ ।
सुत पै प्यावौ पोखि हरि अंग लागावौ आप ॥७७॥
(४. माइ, बाप=माता, पिता)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि है प्रभु आप ही माता पिता हैं । आप ही प्रभु नाम से पोषित कर अपना सानिध्य प्रदान करें ।
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कहि जगजीवन रांमजी, तुम्ही कुटम्ब कुल जाति ।
प्रांण पिंड परिवार हरि, नांम हमारी न्याति५ ॥७८॥
(५. न्याति=जाति विरादरी वाले या रिश्तेदार)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप ही परिवार कुल और हमारी जाति हैं । आप ही प्राण है देह हैं और रिश्ते नातेदार हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, बेद भेद हरि नांम ।
जनजीवन जस प्रेम रस, नूर पिवै निज ठांम ॥७९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप ही हमारे वेद, वेदों के अंग व प्रभु नाम हैं आप तो हमें अपने तेजोमय स्वरूप का दर्शन दें वह ही हमारे लिये प्रेमानंद है ।
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जन के तुम ही एक हरि, ज्यूं बालक के माइ ।
कहि जगजीवन प्रेम रस, सतगुरु प्यावौ६ आइ ॥८०॥
(६. प्यावो=पिलावो)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इस बालक के तो आप ही माँ हैं । आप ही आकर प्रेमानंद पिलायें प्रभु ऐसा निवेदन कर रहे हैं ।
(क्रमशः)

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