शनिवार, 23 सितंबर 2023

*पूरव पाप लख्यो उर धार्यो*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*कर्म फिरावैं जीव को, कर्मों को करतार ।*
*करतार को कोई नहीं, दादू फेरनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा,* *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*आमिल१ बूझत याहि हत्यो हम,*
*सोच पर्यो कर काटहि डार्यो ।*
*हाथ कटे उठ पंथ चले हरि,*
*पूरव पाप लख्यो उर धार्यो ॥*
*श्री जगनाथ पठी सुख पालहि,*
*ले सदना न चढ़े सु विचार्यो ।*
*नीठि२ चढ़े प्रभु पास गये,*
*सुपना सम त्रास मिटी पन पार्यो ॥३७३॥*
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उस ग्राम के अधिपति१ ने सदन को पूछा - "इसको तुमने मारा है ।" तब सदनजी ने हँसते हुये कहा - ''हाँ हमने ही मारा है ।" किन्तु इने मुख की प्रसन्नता को देख कर अधिपति को पूरा निश्चय नहीं हुआ कि इनने मारा है । इससे वह कुछ चिन्ता में पड़ गया कि अब मैं क्या करूँ । संशय होने से उसने इनका वध नहीं किया, केवल हाथ काट कर छोड़ दिया ।
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कटे हुये हाथों से ही उठकर श्रीहरिजगन्नाथजी के यहाँ जाने वाले मार्ग से पुरी को चल पड़े । बिना दोष ही हाथ कटने का विचार जब हृदय में आया तो विचार किया कि मेरा कोई पूर्व का पाप था, उसका दंड देकर प्रभु ने मुझे शुद्ध कर दिया है । शुद्ध होने पर प्रभु का दर्शन होता है । यह निश्चय हृदय में धारण किया ।
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उधर श्रीजगन्नाथजी ने सदन को लाने के लिये सामने अपनी पालकी भेजी । पंडे लोग पूछते पूछते सदनाजी के पास पहुंच गये । और बोले - "पालकी पर चढ़ो ।" किन्तु सदनजी प्रभु की पालकी समझकर नहीं चढ़ते थे । पंडों ने कहा - "प्रभु की आज्ञा अमिट है, चढ़ना पड़ेगा ।"
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तब वे बिना- इच्छा२ ही कठिनता से उस पर चढे । फिर पंडे उनको प्रभु के पास ले आये । सदनाजी प्रभु का दर्शन करके साष्टांग प्रणाम करने लगे तब उसी क्षण हाथ ज्यों के त्यों हो गये । सब दुःख स्वप्न समान मिट गया ।
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फिर श्रीजगन्नाथजी ने कहा- "तुमने भक्ति का प्रण भली भांति पालन किया है । परीक्षा में पूरे उतरे हो । अब आनन्द पूर्वक हमारी भक्ति का विस्तार करो ।" श्रीजगन्नाथजी ने विप्र रूप से कृपा करके सदनाजी के हाथ कटने का रहस्य भी सदनाजी को बता दिया था । ब्राह्मण ने कहा- पूर्व जन्म में तुम काशी में विप्र और पंडित भी थे । एक दिन एक गाय कसाई के घर से निकल कर भागी जा रही थी । पीछे से कसाई भी दौड़ता हुआ आ रहा था । उसने तुमसे पूछा- गाय किधर गई ? तुमने अपने हाथों से उसे बताया था । वही गाय इस जन्म में वह स्त्री हुई है और वह कसाई उसका पति था । कसाई ने गाय का गला काटा था उसी दोष से उस स्त्री ने पति का गला काटा है और तुम्हारे हाथ काटे गये हैं । मैं अपने भक्तों को उनका कर्म भुगता कर निष्पाप कर देता हूँ । यह सुनकर सदनाजी प्रसन्न हुए और ब्राह्मणभेषधारी प्रभु अन्तर्धान हो गये ।
७. आशाधरजी भी जीवों को संसार-नदी से पार करने वाले हरिभक्त हो गये हैं ।
८. डूंगरजी जाट थे । पिता का धन साधु-सेवा में लगा देने से पिता ने इनको अलग कर दिया था । एक दिन साधु-सेवा के लिये हरि ने इनके घर अन्न वर्षाया था । इनने एक सती होने वाली स्त्री का पति जीवित करके उसे बचाया था ।
(क्रमशः)

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