गुरुवार, 28 सितंबर 2023

*पीव पिछाणन कौ अंग ॥*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*जामै मरै सो जीव है, रमता राम न होइ ।*
*जामण मरण तैं रहित है, मेरा साहिब सोइ ॥*
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*पीव पिछाणन कौ अंग ॥*
जिहिं स्यूँ प्रीति ऊपनी थाँकै, 
तिहिं कौ त्याग सही छै म्हाँकै ।
गुर दादू म्हांन्हैं समझायौ, 
गुणधारी सब झूठ बतायौ ॥१॥
किसी के द्वारा यह पूछे जाने पर कि आपका प्रियतम = उपास्य कौनसा है, श्रीबषनांजी ने इस प्रकार उत्तर दिया, हे सगुणसाकार-परमात्मोपासक पृच्छक ! जिस सगुण-साकार-परमात्मा से आपने प्रीति कर रखी है, उसका हमने निश्चित रूप से त्याग कर दिया है, क्योंकि गुरु दादूजी महाराज ने हमें उपदेश दिया है कि गुणधारी परमात्मा सर्वथा झूठा = उपजने-खपने वाला होने से विनाशी है और जो विनाशी होता है वह झूठा होता है ॥१॥
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रकत बिंद स्यूँ नीपनी, पाँच तत्त्व की देह ।
बषनां जाम्या मरि गया, त्याँह स्यूँ किसौ सनेह ॥२॥
जिन अवतारों का शरीर रक्त = रज तथा बिंद = शुक्र के संयोग से पाँच तत्त्वों से निर्मित होता है, वे जन्मते और समय पूरा होने पर मरते भी हैं । ऐसे मरणधर्मा शरीर वाले अवतारों से कैसे स्नेह किया जा सकता है, कैसे उनकी उपासना की जा सकती है ॥२॥
(क्रमशः)

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