गुरुवार, 14 सितंबर 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३७३

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३७३)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३७३. सतगुरु तथा नाम महिमा । त्रिताल*
*सतगुरु चरणां मस्तक धरणां,*
*राम नाम कहि दुस्तर तिरणां ॥टेक॥*
*अठ सिधि नव निधि सहजैं पावै,*
*अमर अभै पद सुख में आवै ॥१॥*
*भक्ति मुक्ति बैकुंठा जाइ,*
*अमर लोक फल लेवै आइ ॥२॥*
*परम पदारथ मंगल चार,*
*साहिब के सब भरे भंडार ॥३॥*
*नूर तेज है ज्योति अपार,*
*दादू राता सिरजनहार ॥४॥*
सतगुरु के चरण कमलों में मस्तक रखकर(उनका सहारा लेकर) हरि भजन करने वाला प्राणी दुस्तर संसार सागर से पार हो जाता हैं और अनायास ही अष्टसिद्धि नवनिधियें भी उसको प्राप्त हो जाती हैं यदि वह चाहता हो तो । अभयपद भक्तिमुक्ति भी मिल जाती हैं । वैकुण्ठ स्वर्ग के सुखों को भी प्राप्त कर लेता है उस भक्त का सदा मंगल ही होता हैं ।
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प्रभु भक्त के सकल मनोरथों को पूर्ण करने वाले तथा समस्त वस्तुओं के भण्डार हैं । प्रभु भक्ति से भक्त को क्या क्या नहीं मिल सकता अपितु सब कुछ प्राप्त कर लेता हैं । अतः मैं ज्योतिस्वरूप सृष्टि के कर्ता ब्रहमस्वरूप राम के नाम चिन्तन में सद्गुरु की कृपा से सदा अनुरक्त रहता हूँ ।
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श्रीमद्भागवत में लिखा ही कि –
आदिनारायण अनन्त भगवान् के प्रसन्न हो जाने पर ऐसी कौनसी वस्तु है जो नहीं मिल सकती । लोक और परलोक के लिये जिन धर्म अर्थ आदि की आवश्यकता बतलायी जाती हैं वे तो गुणों के परिणाम से बिना प्रयास के स्वयं ही मिलने वाले हैं । जब हम श्रीभगवान के चरणामृत का सेवन करने में लगे हैं उनके नाम गुणों का चिन्तन कर रहे हैं तब हमें मोक्ष की भी क्या आवश्यकता हैं ।
(क्रमशः)

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