गुरुवार, 28 सितंबर 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३७७

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३७७)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३७७. धन्यवाद । षड्ताल । आशीर्वाद*
*धन्य धन्य तूँ धन्य धणी,*
*तुम्ह सौं मेरी आइ बणी ॥टेक॥*
*धन्य धन्य धन्य तूँ तारे जगदीश,*
*सुर नर मुनिजन सेवैं ईश ।*
*धन्य धन्य तूँ केवल राम,*
*शेष सहस्र मुख ले हरि नाम ॥१॥*
*धन्य धन्य तूँ सिरजनहार,*
*तेरा कोई न पावै पार ।*
*धन्य धन्य तूँ निरंजन देव,*
*दादू तेरा लखै न भेव ॥२॥*
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श्रीदादूजी महाराज आशीर्वादात्मक मंगलाचरण कर रहे हैं कि हे स्वामिन् ! आपकी शरण में आने मात्र से ही मेरा उद्धार हो गया और मुझे शान्ति मिल गई । हे प्रभो आपको बारंबार धन्यवाद है कि मैं आपकी महिमा का कैसे वर्णन कर सकता हूँ ।
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क्योंकि आपको मनुष्य मुनिवर देवता महादेव आदि सभी भज रहे हैं । आप ही हमें संसार सागर से पार करने वाले हैं । अद्वैत स्वरूप राम ! आपको धन्यवाद हैं क्योंकि हजार मुख वाले शेष दो हजार जिव्हाओं से दिनरात आपके नाम का जप करते रहते हैं ।
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हे सृष्टि के बनाने वाले प्रभो ! आपको धन्यवाद है क्योंकि आपका पार कोई नहीं पा सकता । धन्य है प्रभो ! मैं भी आपके इस रहस्य को नहीं जान सका । आपको बारंबार धन्यवाद है क्योंकि आप आदि अन्त से रहित हैं और आपके भेद को कोई नहीं जान सका ।
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गीता में कहा है कि –
हे भगवन् हे विश्वेश्वर ! मैं आपके आदि अन्त और मध्य को नहीं देख रहा हूँ ।
(क्रमशः)

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