सोमवार, 18 सितंबर 2023

*३९. बिनती कौ अंग ६९/७२*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग ६९/७२*
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कहि जगजीवन रांमजी, तुम थें बंचै मार ।
हरषि हरषि हरिजस कहै, नांम रटै पिव लार ॥६९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे राम जी आप ही हमें यम की मार से बचा सकते हैं । हम खुश होकर हरि महिमा गाते रहें और परमात्मा के साथ नाम गाते रहें ।
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कहि जगजीवन रांमजी, निहचल कीजै मांहि ।
देह विदेह सनेह सुख, अंग थैं बिछुटै८ नांहि ॥७०॥
८. बिछुटै=वियोग न हो ।
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आप हम में स्थिरता बनाये रखें । आप हमें देह व देह से परे सुख दें और हम कभी आपके सानिध्य से परे न हों ।
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कहि जगजीवन रांमजी, सब कोइ सुमिरैं नांम ।
सोइ भगति मोहि दीजिये, सरि आवैं९ सब कांम ॥७१॥
(९. सरि आवैं=पूर्ण हो)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सब कोइ राम स्मरण करें ऐसी भक्ति मुझे दीजिये । जिससे मेरे सब कार्य सिद्ध हो ।
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कहि जगजीवन रांमजी, तुम निरास की आस ।
तुम सौं अधिक सनेह करि, राखौ चरणन की पास ॥७२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे राम जी तुम ही निराश जन की आशा हो । हम आपसे बहुत स्नेह करते हैं आप हमें अपने चरणों के पास रखें ।
(क्रमशः)

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