मंगलवार, 19 सितंबर 2023

द्रोपति पूज्यौ साध

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*साचे का साहिब धणी, समर्थ सिरजनहार ।*
*पाखंड की यहु पृथ्वी, प्रपंच का संसार ॥*
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सिर कौ चीर उतारि करि, द्रोपति पूज्यौ साध ।
बषनां नागी ना हुई, नृप कीन्हौं अपराध ॥२॥
द्रोपदी ने अपनी साड़ी को फाड़कर उसका एक टुकड़ा महर्षि दुर्वासा को लंगोटी लगाने हेतु अर्पित किया जिसके परिणामस्वरूप दुःशासन द्वारा भरी सभा में नग्न करने की ठान लेने पर भी वह नग्न न हो सकी ।
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एक बार महर्षि दुर्वास स्नान कर रहे थे । पानी के तेज प्रवाह में उनकी लंगोटी बह गई । महर्षि नग्नावस्था में जल से बाहर नहीं निकल पा रहे थे क्योंकि तट पर द्रोपदी आदि स्त्रियाँ भी मौजूद थीं । द्रोपदी ने मुनि की समस्या समझी और तत्काल अपनी साड़ी का पल्ला फाड़कर मुनि को समर्पित किया ।
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परिणामतः मुनि ने द्रोपदी को आशीर्वाद दिया कि तू कभी भी कितने भी प्रयत्न किया जाने पर भी किसी के भी द्वारा नग्न न हो सकेगी । यह आशीर्वाद उस समय काम आया जब राजा = दुर्योधन के आदेश पर दस हजार हाथियों के बराबर बल वाले दुःशासन ने भरी सभा में उसे नग्न करना चाहा ॥२॥
“दस हजार हाथिन कौ बल घट
घट्यौ न दस गज चीर” ॥
(क्रमशः)

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