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*परमारथ को
सब किया, आप स्वार्थ नांहि ।*
*परमेश्वर
परमार्थी, कै साधु कलि मांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधू का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार
विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)डाक्टर सरकार तथा मास्टर*
आज रविवार है, कार्तिक, कृष्णद्वितीया, २५ अक्टूबर, १८८५ । श्रीरामकृष्ण कलकत्ते के श्यामपुकुरवाले मकान में रहते हैं । गले
में पीड़ा(Cancer) है, उसी की चिकित्सा
हो रही है । आजकल डाक्टर सरकार देख रहे हैं ।
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डाक्टर को
श्रीरामकृष्णदेव की अवस्था की खबर देने के लिए रोज मास्टर जाया करते हैं । आज सुबह
साढ़े छः बजे के समय प्रणाम करके मास्टर ने पूछा - "आप कैसे हैं ?" श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं - "डाक्टर से कहना, रात
के पिछले भाग में मुँह कुल्ला भर पानी से भर जाता है, खाँसी
है । पूछना, नहाऊँ या नहीं ।"
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सात बजे के
बाद मास्टर डाक्टर सरकार से मिले और कुल हाल उनसे कहा । डाक्टर के वृद्ध शिक्षक
तथा दो-एक मित्र वहाँ उपस्थित थे । डाक्टर ने वृद्ध शिक्षक से कहा, 'महाशय, रात तीन बजे से मुझे परमहंस की चिन्ता है,
नींद नहीं आयी, अब भी परमहंस की चिन्ता है ।'
(सब हँसते हैं)
.
डाक्टर के
मित्र डाक्टर से कह रहे हैं, “महाशय, मैंने
सुना है, कोई कोई उन्हें अवतार कहते हैं । आप तो रोज देखते
हैं, आपको क्या जान पड़ता है ?"
डाक्टर ने कहा, "मनुष्य की दृष्टि से उनकी मैं अत्यन्त
भक्ति करता हूँ ।"
मास्टर
(डाक्टर के मित्र से) - डाक्टर महाशय बड़ी कृपा करके उनकी चिकित्सा कर रहे हैं ।
.
डाक्टर -
कृपा करके ?
मास्टर - हम
लोगों पर आप कृपा करते हैं, श्रीरामकृष्णदेव पर मैं नहीं कह रहा ।
डाक्टर -
नहीं जी, ऐसा भी नहीं, तुम लोग नहीं जानते । वास्तव में मेरा नुकसान हो रहा
है, दो-तीनCall (बुलावा) रोज ही रह
जाते हैं - जा नहीं पाता । उसके दूसरे दिन रोगी के यहाँ खुद जाता हूँ और फीस(Fees)
नहीं लेता, - खुद जाकर फीस लूँ भी कैसे ?
.
श्री
महिमाचरण चक्रवर्ती की बात चली । शनिवार को जब डाक्टर परमहंसदेव को देखने के लिए
गये थे, तब चक्रवर्ती महाशय उपस्थित थे । डाक्टर को देखकर
उन्होंने श्रीरामकृष्ण से कहा था, ‘महाराज, डाक्टर का अहंकार बढ़ाने के लिए आपने रोग की सृष्टि की है ।’
मास्टर
(डाक्टर से) - महिमा चक्रवर्ती आपके यहाँ पहले आया करते थे । आप घर में डाक्टरी
विज्ञान पर लेक्चर देते थे, वे सुनने के लिए आया करते थे ।
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डाक्टर - ऐसी
बात ? परन्तु उस मनुष्य में तमोगुण भी कितना है ! देखा था
तुमने ? - मैंने नमस्कार किया था जैसे वह तमोगुणी ईश्वर हो ।
और ईश्वर के भीतर तो तीनों गुण हैं । उसकी उस बात पर तुमने ध्यान दिया था ? – ‘आपने डाक्टरों का अहंकार बढ़ाने के लिए रोग का आश्रय लिया है ।'
मास्टर -
महिमा चक्रवर्ती को विश्वास है कि श्रीरामकृष्णदेव अगर खुद चाहें तो बीमारी अच्छी
कर सकते हैं ।
.
डाक्टर - अजी, ऐसा भी कभी होता है ? - आप ही आप बीमारी अच्छी कर
लेना ? हम लोग डाक्टर हैं, हम लोग तो
जानते हैं न, कि उस बीमारी के भीतर क्या क्या है ।
"हम ही जब इस तरह की बीमारी अच्छी नहीं कर सकते - तब वे तो कुछ जानते भी
नहीं, वे किस तरह अच्छी करेंगे ? (मित्रों
से) देखिये, रोग दुःसाध्य है, परन्तु
इतना अवश्य है कि ये लोग उनकी सेवा भी खूब कर रहे हैं ।"
(क्रमशः)
शुक्रवार, 22 सितंबर 2023 के आगे का वचनामृत क्यों बन्द है, भगवान रजनीश के प्रवचन के लिए श्री रामकृष्ण देव के वचनामृत को क्यों रोक दिए ?
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