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*अन्तरजामी कर सहाइ,*
*तेरो दीन दुखित भयो जन्म जाइ ।*
*त्राहि त्राहि प्रभु तूँ दयाल,*
*कहै दादू हरि कर संभाल ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३६६)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग नट नारायण १८(गायन समय रात्रि ९-१२)
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१९४ विनय । धीमा त्रिताल
बिनती सुनिये सकल शिरताज,
सब की आदि सकल पतिपालक, सदा गरीब निवाज१ ॥टेक॥
यहु अरदास२ पास प्रभु राखो, सारो३ सेवक काज ।
आतम राम हिं कौन मिलावै, काहि कहैं तुम बाज४ ॥१॥
यहु अंतर मेटो इहिं अवसर, अन्तर्यामी आज ।
बारंबार बहुरि नहिं लहिये, नर नारायण साज५ ॥२॥
त्राहि त्राहि कहिये किहिं आगे, पुत्र दुखी पितु राज ।
रज्जब रुदन करत करुणामय, बहो६ विरुद७ की लाज ॥३॥२॥
कल्याणार्थ विनय कर रहे हैं -
✦ सर्व शिरोमणि प्रभु ! मेरी विनय सुनिये, आप सर्व के आदि स्वरूप हैं, सबके रक्षक हैं, सदा गरीबों पर कृपा१ करते हैं ।
✦ मेरी यह प्रार्थना२ है, प्रभो ! मेरा अज्ञान निवृति रूप कार्य सिद्ध३ करके मुझे अपने पास रखिये । आप आत्म स्वरूप राम को अन्य कौन मिलायेगा ? आपके बिना४ मैं यह अपनी स्थिति किससे कहूं ?
✦ अन्तर्यामी प्रभो ! इस मनुष्य जीवन में यह अवसर है, इसलिये मेरा यह अन्तराय मिटा दीजिये । पुन: बारंबार यह नारायण को प्राप्त कराने वाली नर शरीर रूप सामग्री५ नहीं प्राप्त होगी ।
✦ विश्व के राजा पिताजी ! आप को छोड़कर रक्षा करो रक्षा करो यह शब्द किसके आगे कहूँ ? करूणामय प्रभो ! मैं आपके आगे रो रहा हूं । अपने यश७ की लज्जा का निर्वाह६ कीजिये अर्थात अपने यश की लज्जा रखिये ।
(क्रमशः)
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