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*ज्यों घुण लागै काठ को, लोहा लागै काट ।*
*काम किया घट जाजरा, दादू बारह बाट ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ माया का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*माँगन गांव गये सु तिया इक,*
*रूप हि देखि रु रीझ परी है ।*
*राखि लिये सु प्रसाद करावत,*
*सोय रहे निशि आय खरी है ।*
*संग करो गर काटि न होवत,*
*कंठ कट्यो पति तो न डरी है ।*
*पागि१ कहा अब काम नहीं मम,*
*रोय उठी इन नार हरी है ॥३७२॥*
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मार्ग में एक ग्राम में भिक्षा लेने को एक घर में गये । उस घर की स्त्री इनका सुन्दर रूप देखकर इन पर आसक्त हो गई और बोली- "आप आज यहाँ ही भोजन करो और विश्राम भी यहाँ ही करो ।"
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आप ठहर गये । रात्रि के समय वह स्त्री इनके पास आकर खड़ी हो गई और बोली- "मुझ से संग करो ।" आपने कहा- "यदि तू गला भी काट डाले तो भी मुझ से ऐसा नहीं होगा ।"
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उसने यह समझकर कि मेरे पति के भय से नटता है । निर्भयता के साथ भीतर जाकर सोये हुए अपने पति का कंठ काट डाला । फिर कामवेग में निमग्न१ होकर आई और बोली - "अब तुम को कोई भय नहीं रहा है, निर्भयता से मेरा संग करो ।"
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सदनाजी ने कहा- "मैं तो पहले ही नट गया था, अब भी कहता हूँ कि मेरा तुमसे क्या सम्बन्ध है अर्थात् मैं कदापि संग नहीं करूँगा ।" तब वह रोकर पुकारने लगी कि - "मेरे को अपने साथ ले चलने के लिये इसने मेरे पति की गर्दन काट डाली है ।" यह सुनकर गाँव के लोग इकट्ठे हो गये ।
(क्रमशः)
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