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*दादू कारण कंत के, खरा दुखी बेहाल ।*
*मीरां मेरा महर कर, दे दर्शन दरहाल ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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मास्टर (डाक्टर से) - इन्होंने (महिमाचरण ने) विज्ञान का अध्ययन खूब किया है ।
डाक्टर (हँसकर) - कौनसा विज्ञान ? क्या मैक्समूलर का साइन्स ऑफ रिलिजन (धर्मविज्ञान) ?
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महिमा (श्रीरामकृष्ण से) - आपकी बीमारी में डाक्टर क्या करेंगे ? जब मैंने सुना, आप बीमार हैं, तब सोचा, डाक्टरों का आप अहंकार बढ़ा रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - ये बड़े अच्छे डाक्टर हैं, और बहुत बड़े विद्वान् भी हैं ।
महिमा - जी हाँ, वे जहाज हैं और हम सब डोंगे हैं ।
विनयपूर्वक डाक्टर हाथ जोड़ रहे हैं ।
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महिमा - परन्तु वहाँ (श्रीरामकृष्ण के पास) सब बराबर हैं ।
श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र से गाने के लिए कह रहे हैं । नरेन्द्र गा रहे हैं –
गाना - तुम्हें ही मैंने अपने जीवन का ध्रुवतारा बनाया है ......।
गाना - अहंकार में मत्त हो रहा हूँ, अपार वासनाएँ उठ रही हैं ..... ।
गाना - तुम्हारी रचना अपार है, चमत्कारों से भरी हुई है ......।
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गाना - महान् सिंहासन पर बैठे हुए हे विश्वपिता, तुम अपने ही रचित छन्दों में विश्व के महान् गीत सुन रहे हो । मर्त्य की मृत्तिका बनकर, इस क्षुद्र कण्ठ को लेकर, तुम्हारे द्वार पर मैं भी आया हुआ हूँ.... ।
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गाना - हे राजराजेश्वर, दर्शन दो ! मैं तुम्हारी करुणा का भिक्षुक हूँ, मेरी ओर कृपाकटाक्ष करो । तुम्हारे श्रीचरणों में मैं अपने इन प्राणों का उत्सर्ग कर रहा हूँ, परन्तु ये भी संसार के अनलकुण्ड में झुलसे हुए हैं....। गाना - हरिरस-मदिरा पीकर, ऐ मेरे मन-मानस, मत्त हो जाओ । पृथ्वी पर लोटते हुए उनका नाम लो और रोओ.... ।
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श्रीरामकृष्ण - और वह गाना - "जो कुछ है सब तू ही है ।"
डाक्टर – अहा !
गाना समाप्त हो गया । डाक्टर मुग्ध हो गये । कुछ देर बाद डाक्टर बड़े भक्तिभाव से हाथ जोड़कर श्रीरामकृष्ण से कह रहे हैं - तो आज आज्ञा दीजिये, कल फिर आऊँगा ।
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श्रीरामकृष्ण - अभी कुछ देर और ठहरो । गिरीश घोष के पास खबर भेजी गयी है ।
(महिमा की ओर संकेत करके) "ये विद्वान् हैं, और ईश्वर के कीर्तन में नाचते भी हैं । इनमें अहंकार छू नहीं गया । ये कोन्नगर चले गये थे, इसलिए कि हम लोग वहाँ चले गये थे । स्वाधीन हैं, धनवान हैं, किसी की नौकरी नहीं करते । (नरेन्द्र को दिखलाकर) यह कैसा है ?"
डाक्टर – जी, बहुत अच्छे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - और ये -
डाक्टर – अहा !
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महिमा - हिन्दुओं के दर्शन अगर न पढ़े गये तो मानो दर्शनों का पढ़ना ही अधूरा रह गया । सांख्य के चौबीस तत्त्वों को यूरोप न तो जानता है और न समझ ही सकता है ।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - तुम कौन से तीन मार्गों की बात कहते हो ?
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महिमा – सत्पथ - ज्ञानमार्ग । चित्पथ - योगमार्ग, कर्ममार्ग; इसमें चार आश्रमों की क्रिया, कर्तव्य आदि वर्णित हैं । तीसरा है आनन्दपथ - भक्ति और प्रेम का मार्ग । आपमें तीनों मार्ग हैं - आप तीनों मार्ग की खबर बतलाते हैं । (श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं ।)
महिमा - मैं और क्या कहूँ ? वक्ता जनक और श्रोता शुकदेव !
डाक्टर बिदा हो गये ।
(क्रमशः)
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