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*शून्य सरोवर सहज का, तहँ मर जीवा मन ।*
*दादू चुणि चुणि लेयगा, भीतर राम रतन ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १२५. श्रीरामकृष्ण तथा डाक्टर सरकार*
*(१)डा. सरकार तथा धर्मचर्या*
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नरेन्द्र, महिमाचरण, मास्टर, डाक्टर सरकार आदि भक्तों के साथ श्रीरामकृष्ण श्यामपुकुर के दुमँजले पर कमरे में बैठे हुए हैं । दिन के एक बजे का समय होगा । २४ अक्टूबर १८८५, कार्तिक ।
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श्रीरामकृष्ण - तुम्हारी यह (होमियोपैथिक) चिकित्सा अच्छी है ।
डाक्टर - इसमें रोगी की अवस्था पुस्तक में लिखे चिन्हों के साथ मिलायी जाती है । जैसे अंग्रेजी बाजा बजाने की लिपि, - वह पढ़ी जाती है और साथ ही साथ गायी भी ।
“गिरीश घोष कहाँ हैं ? – परन्तु रहने दो । कल का जगा हुआ होगा ।”
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श्रीरामकृष्ण - अच्छा, भाव की अवस्था में भंग जैसा नशा चढ़ता है, यह क्या है ?
डाक्टर (मास्टर से) – स्नायुओं के केन्द्र हैं, उनकी क्रिया बन्द हो जाती है, इसीलिए सब जड़ हो जाता है - इधर पैर लड़खड़ाते रहते हैं । सब शक्ति मस्तिष्क की ओर जाती है । इसी स्नायविक क्रिया से जीवन है । गरदन के पास मेडूला आब्लांगेटा (Medulla Oblongata) है, इसकी क्षति होने पर जीवन का दीपक बुझा हुआ जानो ।
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श्रीयुत महिमाचरण चक्रवर्ती सुषुम्ना नाड़ी के भीतर कुण्डलिनी शक्ति की बात कह रहे हैं - 'मैरुदण्ड के भीतर सूक्ष्म भाव से सुषुम्ना नाम की एक नाड़ी है - इसे कोई देख नहीं सकता । यह महादेवजी का वाक्य है ।’
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डाक्टर - शिव ने मनुष्य की परीक्षा उसकी पूर्ण अवस्था में की । परन्तु युरोपियनों ने तो मनुष्य की जाँच गर्भावस्था से लेकर पूर्ण अवस्था तक सभी में की है । इसका तुलनात्मक इतिहास समझ लेना अच्छा है । भीलों का इतिहास पढ़कर पता चला है कि काली एक भीलनी थी, वह खूब लड़ी थी ! (सब हँसते हैं)
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"तुम लोग हँसो मत । तुलनात्मक जीवशरीर विद्या (Anatomy) से कितना उपकार हुआ है, सुनो । पहले पाचनशक्ति पैदा करनेवाले रस और पित्त का भेद समझ में नहीं आ रहा था । फिर क्लाड बरनार्ड ने खरगोश की यकृत आदि की परीक्षा करके देखा कि पित्त और उस रस की क्रिया में अन्तर है । "इससे सिद्ध होता है कि छोटे छोटे प्राणियों की ओर भी हमें ध्यान देना चाहिए । केवल मनुष्य को देखने से काम न चलेगा ।
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"इसी तरह तुलानात्मक धर्म से भी बड़ा उपकार होता है ।
"ये (श्रीरामकृष्णदेव) जो कुछ कहते हैं, हृदय पर उसका असर अधिक क्यों होता है ! सब धर्म इनके देखे हुए हैं । हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, वैष्णव, शाक्त सब धर्मों को इन्होंने स्वयं साधना करके देखा है । मधुमक्खी जब अनेक फूलों से मधु-संचय करती है तभी उसके छत्ते में अच्छा मधु तैयार होता है ।"
(क्रमशः)

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