मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
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*दादू जन ! कुछ चेत कर, सौदा लीजे सार ।*
*निखर कमाई न छूटणा, अपने जीव विचार ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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जापान में एक फकीर हुआ.... बोकोजू। वह टोकियो में, राजधानी में ही था। पुरानी कथा है, कोई तीन सौ वर्ष पहले की। सम्राट रात को, जैसा पुराने सम्राट निकला करते थे, घोड़े पर निकलता था, छिपे हुये वेश में, नगर को देखने: कहां क्या हो रहा है। सारा नगर सोया रहता, यह एक फकीर वृक्ष के नीचे जागा रहता। अक्सर तो खड़ा रहता। बैठता भी तो आंख खुली रखता। आखिर सम्राट की उत्सुकता बढ़ी। 
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पूरी रात, किसी भी समय, भी जाता, मगर उसको जागा हुआ पाता। कभी टहलता, कभी बैठता, कभी खड़ा होता, लेकिन जागा होता। सोया, सम्राट उसे कभी न पा सका। महीने बीत गए, उत्सुकता घनी होने लगी। आखिर एक दिन उससे न रहा गया। वह रुका और कहा कि फकीर, एक उत्सुकता है। अनाधिकार है। कोई हक मुझे पूछने का नहीं, लेकिन उत्सुकता घनी हो गयी है और अब बिना पूछे नहीं रह सकता। किसलिए जागते रहते हो रात भर ?
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फकीर ने कहा कि…संपदा है, उसकी सुरक्षा के लिए। सम्राट और हैरान हुआ। उसने कहा, संपदा दिखाई नहीं पड़ती। ये टूटे—फूटे ठीकरे पड़े हैं। तुम्हारा भिक्षापात्र, ये तुम्हारे चीथड़े—इनको तुम संपदा कहते हो, दिमाग ठीक है? और उनको चुरा कौन ले जाएगा ?
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उस फकीर ने कहा, जिस संपदा की बात मैं कर रहा हूं, वह तुम्हारी समझ में न आ सकेगी। तुम्हें ठीकरे ही दिखाई पड़ते हैं, और ये गंदे वस्त्र…। और वस्त्र गंदे हों कि सुंदर, क्या फर्क पड़ता है—वस्त्र ही हैं; और ठीकरे टूटे—फूटे हों कि स्वर्ण के पात्र हों, ठीकरे ही हैं। इनकी बात ही कौन कर रहा है ? एक और संपदा है, जिसकी रक्षा करनी है।
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पर सम्राट ने कहा, संपदा मेरे पास भी कुछ कम नहीं है, मैं भी सोता हूं।
उस फकीर ने कहा, तुम्हारे पास जो संपदा है, तुम मजे से सो सकते हो, वह खो भी जाए तो कुछ खोएगा नहीं। मेरे पास जो है, वह अगर खो गया तो सब खो जाएगा। और पहुंचने के बिलकुल करीब हूं। हाथ में आयी—आयी बात है, चूक गया तो पता नहीं, कितने जन्म लगेंगे !
- सुनो भई साधो (प्रवचन-20)
॥OSHO॥

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