मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

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*सहज शून्य मन राखिये, इन दोन्यों के मांहि ।*
*लै समाधि रस पीजिये, तहाँ काल भय नांहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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यह कथा मीठी है कि पार्वती के अंग जहां-जहां गिरे, इस शिव के प्रेम और शिव की आत्मीयता की इतनी गहन छाया उनमें है कि उसके सड़े हुए अंगों के स्थानों पर धर्मतीर्थ निर्मित हुए। ये धर्मतीर्थ निर्मित होने का अर्थ ही केवल इतना है... इन्हें हमें प्रेमतीर्थ कहना चाहिए। इतने गहन प्रेम में और ईश्वर की स्थिति का व्यक्ति, बड़े दूर के छोर हैं। क्योंकि ईश्र्वर से हमारा मतलब ही यह होता है कि जो सब राग इत्यादि से बिलकुल दूर खड़े होकर बैठा है।
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इसलिए जैन हैं, या और कोई जो वैराग्य को बहुत मूल्य देते हैं, वे सोच ही नहीं सकते कि शिव को ईश्वरत्व की धारणा मानना कैसे ठीक है; वे यह भी नहीं सोच पाते कि राम को कैसे ईश्र्वर माना जाए, जब सीता उनके बगल में खड़ी है! क्योंकि यह सीता का बगल में खड़ा होना सब गड़बड़ कर देता है। यह फिर जैन की समझ के बाहर हो जाएगा उसका कारण है।
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क्योंकि उसने जो प्रतीक चुना है ईश्वर के लिए वह परम वैराग्य का है। लेकिन वह अधूरा है। क्योंकि तब संसार और ईश्वर विपरीत हो जाते हैं। संसार हो जाता है राग और ईश्वर हो जाता है वैराग्य। शिव राग और वैराग्य दोनों का संयुक्त जोड़ हैं। और तब एक अर्थों में जीवन के समस्त द्वैत को संगृहीत कर लेते हैं।
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तीसरे शब्द का प्रयोग किया है: ‘त्रिलोचन।’ तीन आंख वाले। दो आंखें हम सबको हैं। तीसरी भी हम सब को है, उसका हमें कुछ पता नहीं है। और जब तक तीसरी भी हमारी सक्रिय न हो जाए और तीसरी आंख भी हमारी देखने न लगे, तब तक हम, तब तक हम परमात्म-सत्ता का कोई भी अनुभव नहीं कर सकते हैं। इसलिए उस तीसरी आंख का एक नाम शिवनेत्र भी है। यह भी थोड़ा समझ लें।
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क्योंकि सब द्वैत के भीतर ही तीसरे को खोजने की तलाश है। आपकी दो आंखें द्वैत की सूचक हैं। इन दोनों आंखों के बीच में, ठीक संतुलित मध्य में तीसरी आंख की धारणा, इन दोनों आंखों के पार है। वह फिर दोनों आंखें उस आंख के मुकाबले संतुलित हो जाती हैं। दायां-बायां दोनों खो जाता है। अंधेरा, प्रकाश दोनों खो जाता है। दो आंखें समस्त द्वैत की प्रतीक हैं। ये दोनों खो जाते हैं। और फिर एक आंख ही देखने वाली रह जाती है। उस एक आंख से जो देखा जाता है, वह अद्वैत है; और दो आंख से जो देखा जाता है, वह द्वैत है।
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दो आंख से जो भी हम देखेंगे वह संसार है। और वहां विभाजन होगा। और उस एक आंख से जो हम देखेंगे वही सत्य है, और अविभाज्य है। इसलिए शिव का तीसरा नाम है: त्रिलोचन। उनकी तीसरी आंख पूर्ण सक्रिय है। और तीसरी आंख के सक्रिय होते ही कोई भी व्यक्ति परमात्म सत्ता से सीधा संबंधित हो जाता है।

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