सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

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*सेवा सुकृत सब गया, मैं मेरा मन मांहि ।*
*दादू आपा जब लगै, साहिब मानै नांहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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महावीर के जीवन में बड़ा मीठा उल्लेख है। महावीर का प्रधान शिष्य था : गौतम गणधर। वह वर्षों महावीर के साथ रहा, लेकिन मुक्त न हो सका। वह सबसे ज्यादा प्रखर—बुद्धि व्यक्ति था महावीर के शिष्यों में। उसकी बेचैनी बहुत थी। वह बहुत मुक्त होना चाहता था, उसकी आकांक्षा में कोई कमी न थी और वह सोचता था : 'अब और क्या करूं ? सब दाव पर लगा दिया। सब जीवन आहुति बना दिया। अब मोक्ष क्यों नहीं हो रहा है ?' 
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लेकिन यह बात उसकी समझ में नहीं आती थी कि यही बात बाधा बन रही है। यह जो आग्रह है, यह जो आकांक्षा है कि मोक्ष क्यों नहीं हो रहा—यही बेचैनी यही तनाव खड़ा कर रही है। यह मोक्ष की आकांक्षा भी अहंकार—जन्य है। यह अहंकार का आखिरी खेल है। अब वह मोक्ष के नाम पर खेल रहा है।
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महावीर की मृत्यु हुई तो उस दिन गौतम बाहर गया था। कहीं पास के गांव में उपदेश करने गया था। लौटता था तो राहगीरों ने कहा कि तुम्हें पता नहीं, महावीर तो छोड़ भी चुके देह ? तो वह वहीं रोने लगा। रोते —रोते उसने इतना पूछा राहगीरों से कि मेरे लिए कोई अंतिम संदेश छोड़ा है ? क्योंकि वह निकटतम शिष्य था और महावीर की उसने अथक सेवा की थी, और सब दाव पर लगाया था; फिर भी कुछ अड़चन थी कि समझ में नहीं आता था, क्यों अटका है ?
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तो उन्होंने कहा. हम तो समझ नहीं पाए कि उपदेश का क्या अर्थ है, क्या संदेश का अर्थ है? उन्होंने छोड़ा जरूर है, वचन हमें याद है, हम वह कह देते हैं। हमें अर्थ मालूम नहीं, अर्थ तुम हमसे पूछना भी मत, तुम जानो और वे जानें। इतना ही उन्होंने कहा कि हे गौतम, तू पूरी नदी तो तैर गया, अब किनारे पर क्यों रुक गया है ?
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और कहते हैं, यह सुनते ही गौतम ज्ञान को उपलब्ध हो गया! यह सुनते ही मोक्ष घट गया !
हिमगिरि लांघ चला आया मैं
लघु कंकर अवरोध बन गया।
जलनिधि तैर चला आया मैं
उथला तट प्रतिरोध बन गया।
आदमी पूरा सागर तैर जाता है, फिर सोचता है, अब तो किनारा आ गया—अब किनारे को पकड़ कर रुक जाता है। किनारे को भी छोड़ना पड़े। सब छोड़ना पड़े। छोड़ना भी छोड़ना पड़े। तभी तुम बचोगे अपने शुद्धतम रूप में—निरंजन ! तभी तुम्हारा मोक्ष प्रगट होता है।
ओशो

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