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*मोटे मीर कहावते, करते बहुत डफोल३ ।*
*मरद गरद४ में मिलि गये, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥१८॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*किये रुपइया ऐकठे, चौंकूटे अरु गोल ।*
*रीते हाथनि वै गये, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥५॥*
*चहल पहल सी देखिकैं, मान्यौं बहुत अंदोल१ ।*
*काल अचानक लै गयौ, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥६॥*
*मोटे मीर कहावते, करते बहुत डफोल३ ।*
*मरद गरद४ में मिलि गये, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥१८॥*
(हरि बोल चेतावनी)
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क्या कर रहे हो यहां ? रुपए इकट्ठे कर रहे हैं लोग। सुंदरदास ने जब यह पद लिखा, तो दो तरह के रुपए होते थे; गोल भी होते थे, चौखटे भी होते थे। किए रुपैया इकठे चौकूटे अरु गोल। रीते हाथ बे गए...। और सब, जिन्होंने भी इकट्ठे किए, सब रीत हाथ गए। खाली आए, खाली गए। सच तो यह है, मुट्ठी बंधी आती है जब बच्चा पैदा होता; जब आदमी मरता है मुट्ठी तो खुली होती है। शायद कुछ लेकर आता है, वह भी गंवा देता है।
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*रीते हाथनि वै गये, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥५॥*
अब देर न करो। स्मरण करो उसका, जिसके स्मरण मात्र से हाथ भर जाते हैं; हाथ ही नहीं, प्राण भी भर जाते हैं। संपदा तो एक ही है, वह सत्य की है, वह समाधि की है। और कोई संपदा नहीं है इस जगत में। धोखे में मत रहो। तुम्हारी जिंदगी झूठी है।
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*चहल पहल सी देखिकैं, मान्यौं बहुत अंदोल१ ।*
*काल अचानक लै गयौ, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥६॥*
चहल-पहल यहां बहुत है, दुनिया में आपाधापी बहुत है। भाग- दौड़ा बहुत है, लेकिन पहुंचता कोई भी नहीं। चलते हैं, चलते हैं; गिर जाते हैं। लोग गिरते जाते हैं, और उनके करीब जो लोग हैं वे चलते जाते हैं।
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वे यह नहीं देखते कि यह गिरा एक आदमी, यह गिरा दूसरा आदमी, यह गिरा तीसरा आदमी, अब मेरी भी बारी आती होगी। लोग गिरते जाने हैं। इतना ही नहीं कि तुम लोगों को गिरते देखकर चौंकते नहीं; लोगों की गिरी हुई लाशों पर पैर रखकर सीढ़ियां बना लेते हो।
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तुम थोड़ी और तेजी से ऊपर उठने लगते हो, सोचते हो यह भी अच्छा हुआ, प्रतिद्वंद्वी मरा, अब जरा सुगमता है, थोड़े रुपए जरा ज्यादा इकट्ठा कर लूंगा। तुम मुर्दे के खीसे में भी कुछ रुपए हों तो वे भी निकाल लोगे। तुम मुर्दे की मृत्यु को नहीं देखोगे । तुम्हारी दौड़ जारी रहेगी।
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चहल पहल सी देखिकै मान्यौ बहुत अंदौल।
और चूंकि चहल-पहल बहुत मची हुई है, शोरगुल बहुत मचा हुआ है--यह भ्रांति होती है कि बड़ा आनंद मनाया जा रहा है, बड़ा आनंद उत्सव हो रहा है। आन्यौ बहुत अंदौल। मान्यता की ही बात है। कहां आनंद ? तुम जब बैंड-बाजे बजाते हो तब भी कहां आनंद है ? तुम्हारी शहनाई भी गाती कहां, रोती है। तुम हंसते भी हो तो हंसते कहां हो ? तुम्हारी सब हंसी झूठी है।
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ओंठ ही ओंठ पर है, चिपकी है, चिपकाई गई है, ऊपर-ऊपर लगाई गई है। जैसे स्त्रियां लिपिस्टिक लगाए हुए हैं, वह प्रतीक है तुम्हारी जिंदगी का। लाली भी ओंठ के भीतर से नहीं आ रही है, वह भी ऊपर से लगा ली हुई है। मुस्कुराहट भी वैसे ही ऊपर से लगा ली गई है। कुछ आश्चर्य न होगा, कुछ दिनों में कोई स्प्रे बन जाए कि जब मुस्कुराना हुआ स्प्रे कर लिया, एकदम से हंसी आ गई।
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*मोटे मीर कहावते, करते बहुत डफोल३ ।*
*मरद गरद४ में मिलि गये, (सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥१८॥*
बड़े-बड़े मरद, बड़े-बड़े हिम्मतवर लोग, बड़े साहसी, दुस्साहसी, वे भी मिट्टी में मिल जाते हैं। कायर भी मिल जाते मिट्ठी में और और बहादुर भी मिल जाते हैं मिट्टी में। कुछ बहुत भेद नहीं है।
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धनी और गरीब, सफल और असफल एक साथ गिर जाते हैं। मौत कुछ फर्क नहीं करती, मौत बड़ी समाजवादी है। कहना चाहिए, साम्यवादी है। इसलिए छोटी-छोटी बातों में मत उलझो कि गरीब हूं तो अमीर कैसे हो जाऊं, कायर हूं तो वीर कैसे हो जाऊं? इन छोटी-छोटी बातों में मत उलझो।
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रस तो एक ही बात है, जिसमें लेना, कि बाहर हूं, भीतर कैसे हो जाऊं; आंखें बहार की तरफ खुली हैं, भीतर की तरफ कैसे खुल जाए। मरद गरद में मिल गए, हरि बोलौ हरि बोल। वही है हरि का स्मरण ! ऐसी गति संसार की, अजहूं राखत जोल। आप मुए ही जानि है हरि बालौ हरि बोल ॥ क्या मरोगे तभी जानोगे ? ऐसी गति संसार की...।
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जरा देखो, और करो। इतने लोग मर रहे हैं। जरा गौर से पहचानो। ऐसी गति संसार की। यह गति है, संसार की व्याख्या है, उसका नियम है: यहां जो जन्मा है वह मरेगा। यहां सब मिट्टी में मिल जानेवाला है। ऐसी गति संसार की अजहूं राखत जोल। और फिर भी तुम जो मार रहे हो, इस नियम के विपरीत अभी भी जोर लगा रहे हो कि शायद मैं निकल भागूं।
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जो सिकंदर को नहीं हुआ, शायद मुझे ही जाए।... अजहूं राखत जोल। आप मुये ही जानि है...। क्या तुमने तय ही कर रखा है, जब मरोगे तभी जानोगे ? मगर तब चूक जाओगे, बहुत देर हो जाएगी। फिर करने का कोई उपाय न रह जाएगा। फिर पछताए होते क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ! हरि बालौ हरि बोल।
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इसके पहले कि मौत आ जाए, परमात्मा को पुकार लो। इसके पहले कि मौत द्वार पर दस्तक दे, अमृत को निवासी बना लो, अमृत के अतिथि को बुला लो। फिर मौत नहीं आती है। आती भी है तो तुम्हारी नहीं आती। फिर देह गिरेगी; देह तो गिरनी है। देह तुम्हारी है भी नहीं। रंग-रूप सब गिर जाएगा और मिट जाएगा तुम रहोगे, सदा रहोगे।
ओशो(हरि बोलो हरि बोल प्रवचन)
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